- सेना में धर्म का इस्तेमाल एक धर्म या इलाके के लोगों को एक साथ लाने या फिर एक ईश्वर से प्रेरणा लेने के लिए होता है
- सेना की बटालियन भले धर्म-प्रांत पर आधारित हैं, पर सेना धर्मनिरपेक्ष है, वो सैनिकों को भारत माता से ही जोड़ते हैं
देश में इन दिनों त्यौहारों का मौसम है। नवरात्र में कई हिंदू व्रत रखते हैं। वैसे तो मैं व्रत नहीं रखता, लेकिन जब अपनी रेजिमेंट के जवानों के साथ पोस्टेड था तो चाहे नवरात्र हो या रमजान में व्रत और रोजे दोनों रखता था। मेरे या किसी भी आर्मी ऑफिसर के लिए उसके धर्म से ज्यादा जो अहम है, वो बतौर सैनिक उसकी ड्यूटी, उसकी जिम्मेदारी, अपने सैनिकों के साथ एकजुटता है। मैं जम्मू-कश्मीर लाइट इंफेंट्री रेजिमेंट से हूं। मेरी रेजिमेंट में हर धर्म के सैनिक हैं। और हम सब साथ रहते हैं, ट्रेनिंग लेते हैं, हंसते, खेलते और खुशी-खुशी मौत को गले लगा लेते हैं। ये मॉडल अपने आप में अद्भुत और अनुकरणीय है।
भारतीय सेना दुनिया की असाधारण सेना है, जिसकी लड़ाकू पैदल सेना की संरचना धर्म और धार्मिक मान्यताओं के आसपास हुई है, लेकिन सेना खुद में धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक-सांप्रदायिक एकता का चमकता हुआ उदाहरण है। सेना में धर्म का इस्तेमाल एक धर्म या इलाके के लोगों को एक साथ लाने या फिर एक ईश्वर से प्रेरणा लेने के लिए होता है। सैनिक उसे भारत माता से जोड़कर देखता है। और भारतीय सैनिक देश के लिए अपना सबकुछ कुर्बान करने को राजी हो जाता है।
हमारी रेजिमेंट सैनिकों को एक उद्देश्य हासिल करने के लिए अलग-अलग बैटल क्राय यानी नारे और अलग-अलग मजहब से जोड़ती हैं। रेजिमेंट का बैटल क्राय भले, आयो गोरखाली, बद्री विशाल की जय या फिर भारत माता की जय हो। ये सभी सैनिकों के शौर्य और त्याग को भारत माता से ही जोड़ते हैं। यही वजह है कि धर्म और इलाकों के नाम पर लड़ाई की जगह सेना एक ऐसा स्ट्रक्चर है जो अलग-अलग धर्म और इलाकों को एकजुट करता है।