जमशेदपुर : पूर्वी सिंहभूम जिले के बोड़ाम प्रखंड के बंगाल के झारखंड सीमावर्ती क्षेत्र में बसा एक गांव ऐसा भी है । जहां देश स्वाधीन होने के बाद भी लोगों को नहीं मिली स्वतंत्रता। इस गांव में आज तक पक्की सड़क नहीं बनी है ओर न ही कोई स्कूल, आंगनबाड़ी है।पढ़ाई के लिए आज भी यहां के युवा बंगाल के स्कूलों में ही निर्भर हैं।पेयजल आपूर्ति के लिए एक चापाकल एकमात्र सहारा है। तालाब एक है वह भी सूख गया है। सरकार की अनदेखी का दंश झेल रहे है।बोड़ाम प्रखंड के रासिकनगर पंचायत के सुसनी गांव के ढेंबचू कुल्ही के ग्रामीण। आजादी के वर्षों बाद भी इस टोला में सुविधा देखे तो गोन मात्र है। आज भी इस टोला में पक्की सड़क नहीं बन पाई। जिसका मुख्य कारण है। झारखंड और बंगाल कि सीमा का होना।एक ही सड़क के दो किनारे एक ओर झारखंड तो दूसरी तरफ बंगाल बसा हुआ है।सड़क बीचों बीच होने के कारण दोनों राज्य कि सरकार इन ग्रामीणों को अनदेखा कर रही है। गांव के राजीव महतो बताते हैं कि हमारे ढेबचू कुल्ही की सड़क दो राज्यों के मध्यस्थ होने के कारण न झारखंड सरकार बना रही है और न ही बंगाल सरकार का इस और ध्यान है। दोनों सरकार के निर्णय के बीच हमारी जिंदगी गुजर रही है।इस टोला में सड़क के दो किनारे झारखंड के 15 परिवार और सड़क के दूसरे किनारे बंगाल के 12 परिवार निवास करते हैं।हमारे टोला में आज तक कोई सांसद या विधायक नहीं पहुंचा।सरकारी कर्मचारी भी पंचायत प्रतिनिधियों से ही हमारी हाल चाल जान लेते हैं ।उन्हें भी हमारे इस टोला में हमारा हाल चाल लेने के लिए आने का समय नहीं मिलता ।सड़क के दोनों किनारे झारखंड और बंगाल सरकार ने बिजली का खंभा गाड़कर बिजली की तार जलाकर बिजली तो पहुंचा दी है, लेकिन अन्य जरूरत की सुविधाएं देना भूल गए। गांव की वयस्क महिला करुणा महतो बताती है कि मेरे घर में राशन कार्ड काफी दिन बाद बना हैं, लेकिन डीलर का घर काफी दूर करीब पांच किमी होने के कारण रास्ता के अभाव में लाना काफी मुश्किल लगता है।मेरा ओर मेरे स्वामी का सरकार कि ओर से कोई अन्य सुविधा पेंशन आवास नहीं मिल रहा है।गाव के युवा ग्यारहवीं के छात्र शिवचरण महतो बताते हैं कि हमारे टोला में प्राथमिक विद्यालय,मध्य विद्यालय व उच्च विद्यालय का प्रबंध नहीं है। यहां से झारखंड के सभी स्कूल ,कॉलेज काफी दूर रहने के कारण अधिकांश युवा पीढ़ी बंगाल के स्कूल में ही रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। मैने अपनी पढ़ाई बंगाल के स्कूलों से पूरी की जिस कारण शिक्षा विभाग की कोई भी सुविधा झारखंड का निवासी रहने के कारण न तो अपने राज्य में मिली और नहीं बंगाल के स्कूलों में मिल पाया।युवा दिलीप महतो बताते हैं कि यातायात के अभाव में झारखंड के स्कूल में नामांकन नहीं कराते हैं।