चाईबासा : प्रतिभा छुपी हुई है सबमें, करो उजागर,अथाह ज्ञान, गुण, शौर्य समाहित, तुम हो सागर।डरकर,छुपकर,बन संकोची,रहते क्यूँ हो? मन पर निर्बलता की चोटें,सहते क्यूँ हो? कुछ ऐसी ही एक शिक्षक की कहानी है । एक ऐसे शिक्षक की कहानी जिसकी खुद की जिंदगी अँधेरे में है लेकिन वह ज्ञान का
दीप जलाकर बच्चों को उनके भविष्य के उजाले की ओर ले जा रहे हैं। जी हाँ हम बात कर रहे हैं चक्रधरपुर केंद्रीय विद्यालय के प्राथमिक शिक्षक अलोक बाल की। शिक्षक आलोक बाल बचपन से ही नेत्रहीन हैं । उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं देता, लेकिन उन्होंने अपनी इस शारीरिक अक्षमता को कभी भी अपने जीवन की कमजोरी बनने नहीं दिया। आलोक बाल ने बेहतर शिक्षा ग्रहण कर बच्चों को शिक्षित करने का प्रण लिया। नेत्रहीन होने के बावजूद वे एक आम शिक्षक की तरह बच्चों को पढ़ाते हैं। बच्चों को पढ़ाने की उनकी कला से उनके सहकर्मी भी प्रभावित हैं। बच्चे भी उनकी क्लास को खूब पसंद करते हैं। बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक आलोक बाल अपने ब्रेल लिपि शिक्षा संसाधन का प्रयोग करते हैं। एक हाथ में ब्रेल लिपि दूसरे हाथ में लैपटॉप और मोबाईल से बच्चों के साथ बनता संवाद। खास बात यह है की
ऑनलाइन क्लास होने के कारण कई बच्चों व अभिभावकों को यह पता ही नहीं की शिक्षक आलोक बाल नेत्रहीन हैं, ऑनलाइन में उनके पढ़ाने की शैली से ऐसा कभी किसी को भी आभास ही नहीं होता की आलोक बाल देख नहीं सकते। वे बड़ी आसानी से बच्चों को पढ़ाते चले जाते हैं। बच्चे परेशान भी करते हैं तो आलोक बाल गुस्सा नहीं करते, बच्चों से बड़े प्यार से पेश आते हैं, और कोशिश करते हैं की बच्चों के जिज्ञासा को संतुष्ट किया जाए। शिक्षक आलोक बाल की मानें तो बच्चों से सख्ती से पेश आयेंगे तो वे पढ़ने में मन नहीं लगायेंगे, बच्चों की जिज्ञासा को बढ़ने दीजिये, मरने मत दीजिये। शिक्षक आलोक बाल मूल रूप से ओडिशा के क्योंझर के रहने वाले हैं। बच्चपन से ही वे नेत्रहीन हैं। उनके माता पिता ने बचपन में उनकी आँखों की ईलाज को लेकर खूब प्रयास किया लेकिन कुछ ना हो सका। तब शिक्षक आलोक बाल ने बाल्य अवस्था में ठान लिया की इस कमजोरी को वे कभी अपने जीवन की बाधा नहीं बनने देंगे। पिता के संघर्षपूर्ण जीवन से प्रेरणा लेते हुए शिक्षकों को शिक्षा देने वाले एक प्रशिक्षक को देख उन्होंने शिक्षक बनने का फैसला लिया और आज वे बच्चों को एक कुशल शिक्षक की तरह पढ़ाते हैं।शिक्षक आलोक बाल बताते हैं की भगवान् ने उनकी आँखें छीन ली लेकिन नए जमाने की तकनीक ने उसे तीसरी आँख दे दी। तकनीक के जरिये उन्हें आँखों की कमी को दूर करने में मदद मिली। तकनीक से उन्हें इतना प्यार है की वे हमेशा टेक्नोलोजी को लेकर अपडेट रहते हैं. वे बच्चों को पढ़ाने के लिए कप्यूटर, लेपटोप, मोबाइल, सोफ्टवेयर आदि का प्रयोग करते हैं।उनके तकनिकी ज्ञान का स्कुल के सभी शिक्षक अनुसरण करते हैं। कोरोना काल में कैसे बच्चों को पढ़ायें इसको लेकर भी सहकर्मी शिक्षक आलोक बाल से ही सुझाव लेते रहते हैं। आज शिक्षक आलोक बाल को कुशलता के साथ अपने छात्रों को पढ़ाते हुए देख उनके शिक्षक सहकर्मी भी गौरव की अनुभूति करते हैं। एक शिक्षक की महत्ता क्या है वह शिक्षक आलोक बाल को देख आप समझ सकते हैं। शिक्षक सूरज के सामान हैं जो खुद जलते तपते रहते हैं लेकिन दूसरों को ज्ञान रूपी उजाला देते हैं।