Jamshedpur : पूर्वी सिंहभूम जिले के ग्रामीण क्षेत्र पटमदा के पहाड़ी इलाकों में हर साल शीतकाल के शुरू होते ही खजूर गुड़ बनाने वाले बांकुड़ा के दर्जनों कारीगर जुट जाते है। यह लोग एक माह पूर्व से ही खजूर के पेड़ो की सफाई कर उसके पत्तों को काटकर गुड़ निकालने की तैयारी कर लेते हैं। ठंड के दिनों में अधिकांश त्योहारों में गुड़ से बने पकवान का इस्तेमाल होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में पहाड़ी तराई में बसे अधिकांश गांवो में खजूर का पेड़ो को संख्या बहुत अधिक है। वैसे तो यहाँ के ग्रामीण खजूर के पत्ते से बने झाड़ू बेचकर भी अपना गुजारा चलाते हैं। वहीँ, बाहर से आने वाले गुड़ व्यापारी उन्ही पेड़ो से निकलने वाले तरल पदार्थ से गुड़ बनाते हैं। बांकुड़ा के एक गुड़ व्यापारी जफ्फार खान बताते हैं कि ठंड शुरू होने से कुछ दिन पहले ही वे क्षेत्र में आ जाते है। जिनके जमीन में खुजूर का पेड़ होता हैं उनसे सौदा करने के बाद पेड़ो के अनावश्यक पत्तो को छांटकर पेड़ को तैयार कर लेते हैं। इसके बाद उस पेड़ में कुछ दिन बाद आकर एक प्लास्टिक का घड़ा टांगते हैं। जिसमे प्रतिदिन पूरा घड़ा या आधा घड़ा खजूर का रस निकलता है। इन्हें एक बड़े पात्र में आग की भट्टी पर गर्म करके गुड़ निकाला जाता है।इनसे निकले वाला गुड़ 80 रूपये किलो और ढेला गुड़ 100 से 120 रुपए प्रति किलो बिकता है। टाटा-पटमदा मुख्य सड़क किनारे गुड़ बनाने की भट्ठी लगी होने के कारण इस रास्ते से जाने वाले अधिकांश राहगीर गुड़ लेकर ही जाते हैं।
खजूर गुड़ से बनते हैं खास पकवान
ठंड में गुड़ की खपत ज्यादा होती है और मकर पर्व में खजूर गुड़ की खास डिमांड रहती है। जिसे खरीदने के लिए शहर के दुकानदार गांव पहुंचकर थोक भाव मे गुड़ खरीदकर ले जाते हैं। दुकानदारों की माने तो यहां बिना मिलावट के शुद्ध पाटाली गुड़ मिल जाता है और भाव भी सही मिलता है। शहर में मिलने वाली गुड़ से सबसे बेहतर क्वालिटी का गुड़ है। दुकानदारों के अलावा शहर से लोग पाटाली गुड़ के लिए सुबह-सुबह गांव चले आते हैं। ग्राहकों का कहना है कि शहर में मिलने वाला गुड़ से यह गुड़ ज्यादा स्वादिष्ट होता है इसलिए यहां आते हैं।