पूर्वी सिंहभूम जिले के पटमदा के गुड़ का नाम सुनते की देशी खुशबू का संचार लोगो के मन में आना शुरू हो जाता है।खजूर के पेड़ों से रस निकालकर भट्ठी में गुड़ को काफी मेहनत से तैयार किया जाता है।इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है ।तब जाके एक दिन में एक टीना गुड़ बनकर तैयार हो पाता है।पटमदा क्षेत्र पहाड़ी तराई से घिरा होने के कारण यहां खजूर के पेड़ काफी संख्या में उपलब्ध है।इस क्षेत्र में तैयार गुड़ झारखंड के साथ बिहार व बंगाल तक प्रसिद्ध हैं।
पटमदा प्रखंड के घने जंगलों में सर्दी के दिनों में खजूर के रस से तैयार गुड़ काफी स्वादिष्ट होता है।बनाने की प्रक्रिया ये है सुबह पेड़ से रस को उतार कर भट्ठी आग जलाकर रस को भट्ठी में बैठे कराहा में डालकर काफी देर तक गर्म किया जाता है।इसके बाद इसमें काफी देर के बाद जब गुड़ तैयार हो जाता है तो इसमें इसके खट्टेपन को दूर करने के लिए थोड़ी मात्रा में चीनी का उपयोग किया जाता हैं।इसके बाद इसे उतार कर बर्तन में रखा जाता है।इसमें कुछ मात्रा झोल गुड़ (गिला) रखा जाता है।बाकी को जमीन में बने साचे में डालकर ढेला गुड़ बनाया जाता हैं।
मोहम्मद महमूद खजूर गुड़ व्यापारी बताते हैं की ये खजूर बनाने के प्रक्रिया सर्दी के मौसम में चलता है।शाम के समय आपपास के जितने भी खजूर के पेड़ है।सभी में खजूर के डाली को छीलकर उसमे एक हंडी प्लास्टिक की हंडी टांग दी जाती है।गुड़ को बनाने से पहले अगले दिन शाम को सभी पेड़ में रस को संग्रह करने के लिए हंडिया टांग दी जाती है।जिससे सुबह तक प्राय सभी हंडियो में खजूर का रस भर जाता है।कुछ पेड़ों में रस रिसने की प्रक्रिया कम भी होती है।उसमे पर्याप्त मात्रा में उत्पाद नहीं मिल पाता है।इस दौरान प्रतिदिन एक मात्रा में गुड़ तैयार नहीं हो पाता है।जिसको ग्रामीण क्षेत्र के 60 – 70 रुपए किलो जबकि शहरी क्षेत्र में 90 – 100 रुपए प्रति किलो बेचा जाता है।इसको आसपास के शहर जमशेदपुर के साथ झारखंड के कई जिलों में,पड़ोसी राज्य बंगाल के बांकुड़ा सहित बिहार में भी भेजा जाता है।