जमशेदपुर
भारतीय मजदूर संघ, पूर्वी सिंहभूम की सभी यूनियनों के द्वारा प्रत्येक वर्ष की भांति 28 अगस्त को पर्यावरण दिवस सोनारी, जुगसलाई, रेलवे कालोनी टाटानगर, नरवा पहाड़, तुरामडीह, जादूगोड़ा, मुसावनी, घाटशिला एवं अनेक स्थानों पर वृक्षारोपण करते हुए मनाया गया. 28अगस्त पर्यावरण दिवस पर प्रदेश मंत्री अभिमन्यु सिंह् के द्वारा बताया गया कि माता अमृता देवी को शत शत नमन. पेड़ो की रक्षा के लिए अदभुत बलिदान जिसकी आप कल्पना भी नही कर सकते हैं. एक बार जोधपुर रियासत के महाराजा को महल की मरम्मत हेतु लकड़ी की आवश्यकता पड़ी. उन्होंने अपने कारिन्दों को आदेश दिया कि वे जोधपुर से 25 किलोमीटर दूर खेजड़ी गांव के जंगल से पेड़ों की कटाई करके लकड़ी की व्यवस्था करें. महाराजा के हुक्म का पालन करने कि लिए कुछ सिपाही मजदूरों के साथ कुल्हाड़ी लेकर उस गांव में पहुंचे, जहां खेजड़ी का विशाल घना जंगल है.
वहां पेड़ों की कटाई शुरू हुई ही थी कि गांव के लोग इकट्ठा हो गए और वृक्षों को काटने का विरोध किया, किन्तु उनका विरोध मात्र मौखिक विरोध था.किसी में साहस नहीं था कि आगे बढ़कर समूह का नेतृत्व करें. वीरांगना अमृता देवी, जो घर में चक्की पीस रही थी, को जब पेड़ों की कटाई की खबर मिली तो उसने पेड़ काटने वालों को ललकारा और कहा कि हम प्राण देकर वृक्षों की कटाई रुकवाएंगे.
उसने आगे कहा कि “जो सिर साटे रुख रहे तो भी सस्तो जांण”. इतना कहकर वह पेड़ से चिपक गई. सिपाहियों ने राजाज्ञा उल्लंघन की दुहाई देते हुए उसका सर काट दिया. मां का अनुसरण करते हुए उसकी दो बेटियों ने भी पेड़ से चिपक कर अपना शीश कटवाया. अब क्या था, ग्रामीण लोग एक-एक पेड़ से चिपक गए. सिपाहियों के आदेश से मजदूरों ने पेड़ से चिपके लोगों को एक-एक करके काटना शुरू किया.
अंतिम बलिदान मुकलावा ने अपनी नवविवाहिता पत्नी के साथ दिया. यह घटना 28 अगस्त, 1730 (भाद्रपद शुक्ल 10, सम्वत् 1787) की है. महाराजा जोधपुर को जब इस हृदय-विदारक घटना की जानकारी मिली तो वे घटनास्थल पर आए और जनता से क्षमा मांगते हुए पेड़ों की कटाई रोक दी और घोषणा की कि अब भविष्य में इस क्षेत्र के जंगलों में कोई हरा पेड़ नहीं काटेगा. वह राजाज्ञा आज भी ज्यों की त्यों लागू है.
पर्यावरण प्रदूषण रूपी जिस दानव से आज समूची मानव सभ्यता भयभीत है. उसका आभास महान वीरांगना अमृता देवी को आज से 275 वर्ष पहले ही हो गया था. अमृता देवी एवं उनके गांव के साथियों का वृक्षों की रक्षा के लिए बलिदान देना पूरे विश्व के लिए प्रेरणा स्रोत एवं ज्योति पुञ्ज बन गया है. खेजड़ली गांव में उन अमर बलिदानियों का स्मारक बना है.
बलिदान स्थल पर प्रतिवर्ष “वृक्ष शहीद मेला” लगता है. राजस्थान के अतिरिक्त गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश के हजारों श्रद्धालु यहां इकट्ठा होते हैं और अमर शहीदों को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं. 1997 से राज्य सरकार द्वारा घोषित अमृता देवी पुरस्कार प्रतिवर्ष अधिक से अधिक वृक्षारोपण करने वालों को दिया जाता है.
अमृता देवी बलिदान दिवस 28 अगस्त को भारतीय मजदूर संघ पर्यावरण दिवस के रूप में मनाता है और भारत सरकार से मांग करता है कि 28 अगस्त को राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस की घोषणा की जाय. इस दिन अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना ही अमर बलिदानी वीरांगना अमृता देवी सहित 363 शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धाजलि होगी.
इस कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्य रूप से प्रदेश उपाध्यक्ष बलिराम यादव, प्रदेश मंत्री अभिमन्यु सिंह, प्रदेश कार्यसमिति सदस्य अमरेन्द्र कुमार सिंह,संतोष साहू, जिला अध्यक्ष वाई शुक्ला, जिला उपाध्यक्ष अनिल कुमार सिंह, जिला सह मंत्री अनिमेष कुमार दास, महामंत्री यूरेनियम मजदूर संघ आनन्द महतो, महामंत्री विद्युत मानव दिवस कर्मी संघ दिनेश सिंह,अध्यक्ष जमशेदपुर दुकान कर्मचारी संघ रमेश कुमार सिंह, महामंत्री आदर्श कुमार सिंह, जिला अध्यक्ष भवन निर्माण एवं अन्य सन्निर्माण कामगार यूनियन दीपक घोष, सह मंत्री सिंहभूम ठेकादार मजदूर संघ बीर बहादुर सिंह, महामंत्री घाटशिला कापर मजदूर संघ धर्मेन्द्र कुमार सिंह, कार्यकारी अध्यक्ष सच्चिदानंद त्रिपाठी, अरिन्दम बोस, शिवपुजन कुमार,शिव शंकर प्रधान, नीरज कुमार, उमेश चन्द्र कुमार,प्रेम कुमार, रोशन कुमार एवं अन्य सदस्यों ने भाग लिया.