जमशेदपुर ।
आनन्दमार्ग प्रचारक संघ की सांस्कृतिक संस्था ‘ रावा ” रीनासा आर्टिस्ट एंड रायटर्स एसोसिएशन ” की ओर से गदरा आनंद मार्ग जागृति में एक दिवसीय प्रभात संगीत दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया गया । इस कार्यक्रम में प्रभात संगीत के साथ-साथ प्रभात संगीत आधारित नृत्य का भी आयोजन किया गया था । बच्चों ने प्रभात संगीत पर नृत्य की प्रस्तुति दी साथ-साथ इस कार्यक्रम के मुख्य संगीतकार मानस भट्टाचार्य ने संस्कृत के प्रभात संगीत
“ब्रजकठोर कुसुमकोरक पिनाक पांरये नमो नमस्ते ”
गा कर कार्यक्रम की शुरुआत किए
मंच का संचालन देवव्रत दत्ता ने किया
मानस भट्टाचार्य के कलाकारों ने प्रभात संगीत प्रस्तुत कर उपस्थित दर्शकों का मन मोह लिया प्रभात संगीत के बोल के बोल इस प्रकार थे “आमाय छोटू एक्टि मन दिएछो अनेक आशा रेखे”,
“दुनिया वालो ताकते रहो हम नजरों को नजराना दिए गए”,
“आमार कृष्ण कोथाएं बोल रे तोरा बोल रे तोरा बोल रे’। प्रभात संगीत से संपन्न हुआ प्रभात संगीत दिवस इस अवसर पर जमशेदपुर के लगभग सभी संगीत कला के स्कूलों से बच्चों ने भाग लिया लगभग 100 पार्टिसिपेंट बच्चे भाग लिया जिन्हें कला के प्रदर्शन के बाद पारितोषिक के रूप में मेडल के साथ एक पौधा पर्यावरण की भावना को ध्यान में रखते हुए बच्चों को दिया गया
जमशेदपुर “रावा ” सचिव शहर के चर्चित संगीतकार मानस भट्टाचार्य नहीं कहा कि
प्रभात संगीत के छ: स्तर हैं:
1.विरह
2. मिलन
3. आवेदन
4. निवेदन
5.स्तुति
6.विसर्जन
संगीत में भाव, भाषा, छंद और सुर की प्रधानता होती है। संगीत नंदन विज्ञान(Esthetic Science) है तथा प्रभात संगीत इसी के अंतर्गत आता है। नंदन विज्ञान का अर्थ है दूसरों को आनंद देना एवं दूसरों से आनंद लेना।
कीर्तन मोहन विज्ञान(Supra Esthetic Science) में आता है।मोहन विज्ञान अर्थात जो दूसरों को मोहता है या आकर्षित करता है।
मनुष्य माया के अंधकार में सोया है।प्रभात संगीत से यह अंधकार हटता है तथा स्वर्णिम बिहान आता है।कठोर से कठोर व्यक्ति भी यदि सही ढंग से प्रभात संगीत गाये तो उसने भी उनमें भी अध्यात्मिक जागरण आ जाता है।
नंदन विज्ञान से हम स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर बढ़ते हैं।इसका उपयोग समाज की प्रगति के लिए होना चाहिये।
लगभग 7000 वर्ष पूर्व भगवान सदाशिव ने सरगम का आविष्कार कर मानव मन के सूक्ष्म अभिव्यक्तियों को प्रकट करने का सहज रास्ता खोल दिया था। इसी कड़ी में 14 सितंबर 1982 को झारखंड राज्य के देवघर में आनंद मार्ग के प्रवर्तक भगवान श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने प्रथम प्रभात संगीत” बंधु हे निये चलो” बांग्ला भाषा में देकर मानव मन को भक्ति उनमुख कर दिया।
8 वर्ष 1 महीना 7 दिन के छोटे से अवधि में उन्होंने 5018 प्रभात संगीत का अवदान मानव समाज को दिया। आशा के इस गीत को गाकर कितनी जिंदगियां संवर गई। प्रभात संगीत के भाव ,भाषा, छंद, सूर एवं लय अद्वितीय और अतुलनीय है। संस्कृत बांग्ला, उर्दू , हिंदी, अंगिका ,मैथिली, मगही एवं अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुत प्रभात संगीत मानव मन में ईश्वर प्रेम के प्रकाश फैलाने का काम करता है। संगीत साधना में तल्लीन साधक को एक बार प्रभात संगीत रूपी अमृत का स्पर्श पाकर अपनी साधना को सफल करना चाहिए।
इस पृथ्वी पर उपस्थित मनुष्य के मन में ईश्वर के लिए उठने वाले हर प्रकार के भाव को सुंदर भाषा और सूर में लयबद्ध कर प्रभात संगीत के रूप में प्रस्तुत कर दिया।
उन्होंने कहा कि कोई भी मनुष्य जब पूर्ण भाव से प्रभात संगीत के साथ खड़ा हो जाता है, तो मरूस्थलीय मन भी हरा भरा हो जाता है।
संगीत तथा भक्ति संगीत दोनों को ही रहस्यवाद से प्रेरणा मिलती रहती है। जितनी भी सूक्ष्म तथा दैवी अभिव्यक्तियां हैं, वह संगीत के माध्यम से ही अभिव्यक्त हो सकती है। मनुष्य जीवन की यात्रा विशेषकर अध्यात्मिक पगडंडियां प्रभात संगीत के सूर से सुगंधित हो उठता है। आजकल प्रभात संगीत एक नये घराने के रूप में लोकप्रिय हो रहा है ।
प्रभात संगीत की तो एक अलग ही दुनिया है। मन हर्षित हो या व्यथित हो , शंकाओं से घिरा हो या फिर द्रवित हो। प्रभात संगीत आपके अंतर्मन के तार को झंकृत कर नये उत्साहजनक वातावरण निर्मित कर देता है ।
उमड़ती- घुमड़ती सारी भावनाओं को पंख देने का कार्य ये संगीत करता है । ये नीचे गिरता हुआ मन सांसारिक समीकरणों के बने हुए काले और भारी बादलों को चीर कर ऊपर ही उठता जाए , ऊपर, और ऊपर उड़ता जाए , एक स्वछंद आकाश में आनंदित हो तैरता रहे , वो आकाश जहां भक्त है और उसका भगवान है , उस भक्त की वेदनाएं हैं और उस भगवान का आश्वासन है।आनंद और उत्साह के इस सागर का नाम है प्रभात संगीत। मानवीय अस्तित्व के संगीत के प्रभात का उदय 14 सितम्बर 1982 को शिवनगरी देवघर झारखंड में हुआ था।
साधक के जीवन को प्रखर बनाने वाला ये संगीत अद्वितीय,अनुपम और अद्भुत है। इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से भक्ति प्रधान सुधीर आनंद, अमित महतो अमित कुमार कार्तिक महतो सुनील आनंद डॉ आशु का मुख्य रुप से सहयोग रहा