बी मुथुरामन, पूर्व वाईस चेयरमैन, टाटा स्टील
डॉ जमशेद ईरानी उन प्रमुख हस्तियों में से एक हैं जिन्होंने भारत के उदारीकरण के बाद के युग में भारतीय उद्योग की नींव रखने में मदद की। टाटा स्टील के प्रबंध निदेशक के रूप में 1992 से और रतन टाटा, जिन्हें उस वक्त टाटा स्टील के चेयरमैन बने एक साल से भी कम समय हुआ था, दोनों 1991 में भारत के आर्थिक उदारीकरण के बाद “न्यू टाटा स्टील” के संस्थापक हैं।
1991 तक, सरकार द्वारा लंबे समय तक इसपर लगाए गए प्रशासनिक नियंत्रण, जो गवर्नेंस के अपने समाजवादी दर्शन पर आधारित था, के परिणामस्वरूप टाटा स्टील कमजोर, तकनीकी रूप से पुरानी, उच्च परिचालन लगत के साथ, बाजार की जरूरतों के अनुरूप उत्पाद का अभाव और बहुत कम ग्राहक तथा बाजार में पैठ की कमी के माहौल से घिरी थी। विश्व प्रसिद्ध कंसल्टेंट्स ने टाटा स्टील को “अप्रतिस्पर्धी और अस्थिर” करार दिया।
केवल दस वर्षों के समय में, 1992 और 2001 के बीच, ईरानी ने रतन टाटा के समर्थन और मार्गदर्शन के साथ, टाटा स्टील के संचालन और व्यवसाय के सभी क्षेत्रों में पूर्ण परिवर्तन किया। 2001 तक, यह दुनिया में स्टील की सबसे कम लागत वाली उत्पादक बन गयी। इसने कई पुरानी तकनीकों को नई तकनीकों और उपकरणों से बदल दिया। ग्राहक और बाजार उन्मुखीकरण में बड़े पैमाने पर सुधार हुआ। 90 के दशक के मध्य में उनके द्वारा “कस्टमर हर हाल में” एक स्लोगन बनाया गया। कंपनी के उत्पादों और सेवाओं में व्यापक सुधार हुआ। संक्षेप में, 10 वर्षों की छोटी अवधि के भीतर “नई टाटा स्टील” की नींव रखी गई है।
इसे कई पहलकदमियों के माध्यम से प्राप्त किया गया था – प्रक्रियाओं और उत्पादों की गुणवत्ता पर पैनी नजर, लागत में भारी कमी, मैनपावर रैशनलाइजेशन और जनशक्ति की गुणवत्ता में सुधार, आधुनिक तकनीकों और उपकरणों को शामिल करने और आकांक्षात्मक एवं असंभव प्रतीत होने वाले लक्ष्यों को हासिल करने का प्रण और प्रयोग को प्रोत्साहित करने की संस्कृति का निर्माण करना आदि। किसी भी समय, कंपनी भर में हजारों ‘सुधार परियोजनाएं’ होंगी, जिसमें सभी संवर्गों के कर्मचारी शामिल होंगे। यह ईरानी थे, जिनका समर्थन और मार्गदर्शन रतन टाटा ने किया, जिन्होंने इन प्रयासों को “व्यावहारिक” तरीके से आगे बढ़ाया। 1991 में “अप्रतिस्पर्धी और अन सस्टेनेबल ” के रूप में लिखी गई, टाटा स्टील 2001 तक, एक शानदार सुपरस्ट्रक्चर के निर्माण के लिए पर्याप्त नींव वाली कंपनी बन गई थी।
1991 में, भारत के आर्थिक उदारीकरण के समय, भारतीय उद्योग की प्रक्रियाओं और उत्पादों में बहुत कम गुणवत्ता उन्मुखीकरण था। जेजे ईरानी जापान के जेयूएसई के साथ समय व्यतीत करने वाले पहले भारतीय कॉर्पोरेट अधिकारियों में से एक थे और टीक्यूएम पर प्रारंभिक पाठ सीखकर वापस आए। वह, भारतीय उद्योग के अन्य दिग्गजों के साथ, भारत में गुणवत्ता आंदोलन के बीजारोपण के सूत्रधार थे। तथ्य यह है कि गुणवत्ता अब टाटा स्टील के डीएनए में शामिल हो गई है और निरंतर सुधार, टाटा स्टील एवं जमशेदपुर में जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है, इसका मुख्य कारण टाटा स्टील में अपने नेतृत्व के वर्षों में जेजे ईरानी द्वारा रखी गई नींव और रतन टाटा से उन्हें मिला मार्गदर्शन और समर्थन था।
मुझे टाटा स्टील के रूपांतरण के समय के अपने बॉस की कमीं सताएगी। टाटा स्टील को उनकी सलाह की कमी खलेगी। जमशेदपुर के लोग, जिनके वे अभिन्न अंग बन गए थे, अपने बीच उनकी अनुपस्थिति को मसहूस करेंगे।