चाईबासा।
चक्रधरपुर रेल मंडल में इन दिनों ट्रेनों से सफ़र करना मुसीबत का सबब बन गया है. उसपर भी अगर आप किसी मेमू पैसेंजर ट्रेन में सफ़र कर रहे हैं तो यह आपके लिए किसी बड़े सजा से कम नहीं है. क्योंकि ट्रेन के आने और जाने का कोई निर्धारित समय है ही नहीं. सभी ट्रेनें टाइम टेबल से विपरीत लेट लतीफ़ चल रही है. खासकर मेमू पैसेंजर की तो हालत ऐसी है जैसे की इसमें इन्सान नहीं जानवर सफ़र करते हैं. लगातार बढ़ती ठण्ड के बीच ट्रेनों की लेट लतीफी गरीब रेल यात्रियों पर कहर बरसा रही है. शुक्रावर को राउरकेला से चक्रधरपुर तक चलने वाली सारंडा मेमू पैसेंजर तक़रीबन पांच घंटे लेट चली. जो ट्रेन राउरकेला से खुलकर शाम 5 बजकर 50 मिनट पर गोईलकेरा पहुँच जाति, वह ट्रेन रात के 10 बजकर 16 मिनट पर गोईलकेरा पहुंची. अब आप सहज अंदाज़ा लगा सकते हैं जिन यात्रियों को इस ट्रेन से चक्रधरपुर तक सफ़र करना पड़ा होगा उनकी हालत रात के हाड़ कम्पा देने वाली ठण्ड में क्या हुई होगी. गोईलकेरा से चक्रधरपुर तक इस ट्रेन में सफ़र करने वाले रोशन गुप्ता ने कहा की वे रात साढ़े 11 बजे के बाद चक्रधरपुर पहुंचे थे, ठण्ड काफी बढ़ चुकी थी. उनके जैसे कई यात्री परेशान थे. खासकर सुदूरवर्ती ग्रामीण ईलाकों में रहने वाले लोगों के लिए रात के अँधेरे में ट्रेन से उतरकर ठण्ड में घर जाना मुश्किल का सबब था. लेकिन इन सब से रेल अधिकारियों को क्या फर्क पड़ता है. वे तो अपने कमरे में इस ठण्ड भरी रात में आराम से रजाई तकिया और रूम हीटर चलाकर सो रहे होंगे. मुसीबत उनके लिए है जो गरीब इन ट्रेनों में सफ़र करने को मजबूर हैं. गरीबों की ट्रेन पांच घंटे लेट हो या दस घंटे, कोई ना तो इसकी चिंता करता है और ना ही किसी को इससे फर्क पड़ता है. देश को बुलेट ट्रेन का सपना दिखाया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ गरीब रेल यात्रियों के साथ ये अन्याय किया जा रहा है. विकास का यह कैसा पैमाना है जहाँ हम अपने गरीब भाइयों को पीछे तड़पता बिलखता छोड़ रहे हैं. भारतीय रेल के इतिहास में ट्रेनों की ऐसी लेट लतीफी शायद ही कभी देखि गयी होगी. लेकिन लगातार ट्रेनों के लेट चलने से आम यात्री परेशान हैं वहीँ रेल अधिकारी केवल मालगाड़ियों के परिचालन में ही व्यस्त हैं.