जमशेदपुर।
आनंद मार्ग के संस्थापक श्री श्री आनंदमूर्ति जी को बिहार के पटना बांकीपुर केन्द्रीय कारागार में 12 फरवरी 1973 को दवा के नाम पर विष का दिया गया था।अपने ही अनुयायियों की हत्या करवाने के झूठे मनगढ़ंत आरोप में इंदिरा सरकार की तानाशाही व्यवस्था ने आनंद मार्ग के संस्थापक श्री श्री आनंदमूर्ति जी को गिरफ्तार कर बांकीपुर जेल भेज दिया गया ।
एक सेल में बंद अस्वस्थ वातावरण में बहुत दिनों तक रहने से बीमार पड़ना स्वाभाविक था । जेल के अंदर बाबा बीमार पर गए उस समय जेल के चिकित्सक डॉ एच . के. घोष थे । जान बूझकर सरकार ने डॉ घोष को बदलकर एक दूसरे चिकित्सक डॉ रहमतुल्लाखान खान को ले आया ।
श्री श्री आनंदमूर्ति जी “बाबा “उस समय काफी बीमार चल रहे थे। 12 फरवरी को काफी बीमार पड़ गए 11 बजे रात को डॉक्टर रहमतुल्लाखान ने बाबा को दवा के नाम पर विष का कैप्सूल दिया। फिर क्या था बाबा बेहोश हो गए, उनके शरीर सिकुड़ने लगे, आँखों की रौशनी चली गयी, शरीर दुर्बल हो गया, मस्तिष्क में असहनीय पीड़ा एवं निष्क्रियता का बोध होने लगा। बाबा की किसी तरह जान बच गई। बाबा ने दवा के नाम पर विष प्रयोग की जाँच की मांग राष्ट्पति, प्रधानमंत्री एवं बिहार के राज्यपाल से की परंतु पत्रों के अवहेलना कर सरकार ने विष प्रयोग की न्यायिक जाँच करने की अपील को ठुकरा दिया।इस बीच एक गैर न्यायिक आयोग – चक्रवर्ती कमीशन का गठन हुआ जिसकी अगुआई कलकत्ता हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज कर रहे थे, वे बाबा पर हो रहे अत्याचारों की जांच करने आए थे। कमीशन ने पाया कि बाबा को सचमुच में जहर दिया गया था। पर भारत की सरकार ने चक्रवर्ती कमीशन की खोज को सिरे से दरकिनार कर दिया बाबा और उनके अनुयायियों पर अत्याचारों का सिलसिला जारी रखा।सरकार ने आनन्दमार्ग पर बैन लगा दिया और हजारों सन्यासियों एवं आनन्दमार्गियों को जेल में डाल दिया। तब बाबा ने सरकार को सूचना दे कर अप्रैल 1973 को अन्न यानि ठोस भोजन को त्याग कर उपवास आरम्भ आकर दिया । न ही सरकार ने विष प्रयोग की जांच करवायी और न ही बाबा ने अपना उपवास तोड़ा ।
5 वर्ष 4 महीने 2 दिन तक उपवास जारी रहा। पटना हाई कोर्ट द्वारा हत्या मामले से बरी हो 2 अगस्त 1978 बाबा जेल से रिहा हो गए ।
तब से ही आनंद मार्ग के अनुयायियों द्वारा पाप शक्ति के विरुद्ध अनवरत संग्राम का संकल्प एवं जरूरतमंदों की सेवा प्रत्येक वर्ष 12 फरवरी को पूरे विश्व भर में की जाती है ।