जमशेदपुर : गांधी पीस फाउंडेशन की ओर से सार्वभौमिक मानव और संवैधानिक मूल्य विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन शनिवार को ट्राइबल कल्चरल सेंटर सोनारी में हो गया. कार्यशाला के दूसरे दिन के पहले सत्र में साइंस कम्युनिकेटर डीएनएस आनंद ने मौजूदा भारत में वैज्ञानिक चेतना विषय पर विस्तार से बात रखी. उन्होंने बताया की विज्ञान में कोई अंतिम सत्य नहीं है. सत्य बदलता रहता है. यह बात इसे धर्म से अलग करता है. भारत का संविधान अनूठा है. क्योंकि इसमें नागरिकों के लिए वैज्ञानिक चेतना विकसित करना एक मौलिक कर्तव्य के तौर पर शामिल है. वैज्ञानिक सोच हमारे निजी और सामाजिक जीवन को भी प्रभावित करता है. लोग भावनात्मक तौर पर निर्णय लेते हैं जो तथ्यपरक नहीं होता.
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विज्ञान के दौर में है डायन हत्या जैसी कुरीतियां
विज्ञान के दौर में भी आज समाज में डायन हत्या जैसी कुरीतियां हैं. आज देश के युवाओं पर बड़ी जिम्मेदारी है. बेहतर समाज और देश का निर्माण करें. इसके लिए मानवीय मूल्यों के अलावा वैज्ञानिक सोच और वैज्ञानिक तरीके को अपनाना जरूरी है.
लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण
सुबह के दूसरे सत्र में लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका और मौजूदा चुनौतियां विषय के फैसिलिटेटर वरिष्ट पत्रकार संजय प्रसाद थे. उन्होंने बताया की मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है. इसकी जिम्मेदारी है कि अगर कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाए तो सवाल खड़ा करे. मीडिया ने इतिहास में सकारात्मक भूमिका निभाई है. आजादी के आंदोलन में भी उसने जनमुद्दों को उठाया. संविधान ने आम नागरिकों को भी कुछ शर्तो के साथ अभिव्यक्ति की आजादी दी, लेकिन आज मीडिया पर पूंजी हावी है. विज्ञापन के दबाव में वे सरकार और कॉरपोरेट की आलोचना करने से डरते हैं. पिछले आठ वर्षों में मीडिया का कॉरपोरेट और सरकार के साथ गठजोड़ मजबूत हुआ है. कुछ दो तीन कॉर्पोरेट्स मीडिया का नियंत्रण कर रहे, लेकिन आज वैकल्पिक मीडिया का उभार हुआ जिसमें विरोध के स्वरों को जगह दी जाती है.
सरकार का काम मौलिक अधिकारों का बचाव करना
आखरी सत्र में सीनियर एडवोकेट निशांत अखिलेश ने कहा की सरकार का काम है की हमारे मौलिक अधिकारों का बचाव करे. अगर वह यह नहीं करती तो वह शासन करने की वैधता खो देती है. उन्होंने मानव अधिकार के इतिहास पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा की अमेरिका में पहली बार संविधान ने मानव अधिकार को नागरिकों के मौलिक अधिकार के रूप में दिया. 10 दिसंबर 1948 में विभिन्न देशों ने यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स को लागू किया, जिसमें दुनिया के प्रत्येक नागरिक के पास मानव अधिकार है. हर देश को नए कानून बनाकर इसे लागू करना था. किसी भी देश के नागरिक के पास दूसरे देश में भी अपने मौलिक अधिकार हासिल हुए. भारत में भी सुप्रीम कोर्ट किसी भी मानवाधिकार उलंघन पर अंतराष्ट्रीय कानून का सहारा लेती है. वे ज्यादा से ज्यादा अध्ययन करें. कानून की अधिक से अधिक जानकारी लें. शिक्षा से ही युवा अपने अधिकारों को जान सकते हैं.
कार्यक्रम को लेकर लिया फीडबैक
समापन सत्र में सभी प्रतिभागियों ने कार्यक्रम को लेकर अपना फीडबैक और सुझाव दिया. वर्कशॉप में फैसिलिटेशन की भूमिका में रहे सभी रिसोर्स पर्सन को स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया गया. सभी छात्रों को अंत में सर्टिफिकेट प्रदान किया गया. अंतिम दिन वर्कशॉप में छात्रों के अलावा अरविंद अंजुम, विकास, डीएनएस आनंद, संजय प्रसाद, विक्रम झा, अंकुर, अनमोल, अंकित, रमन, दिनेश यादव, चंदन कुमार आदि मौजूद थे.
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