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मोदी जी! आदिवासी गांव-समाज के लिए जीवनदायी है क्या रामराज का उद्घोष- सालखन मुर्मू
भाजपा के पूर्व सांसद सह आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर कहा है रामराज का उद्घोष आदिवासी गांव समाज के लिए जीवनदायी है क्या
जमशेदपुर : पूर्व सांसद सह आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर कहा है कि आपने रामलला के पत्थर की मूर्ति में कल भव्य रूप से प्राण-प्रतिष्ठा अर्पित किया. न्याय के लिए रामराज का उद्घोष किया. परंतु क्या यह रामराज आदिवासी-गांव समाज के लिए जीवनदायी हो सकता है? जहां जीवित व्यक्ति का प्राण और प्रतिष्ठा को गला दबाकर मारने का काम प्रथा, परंपरा, रूढ़ी आदि के नाम पर रोज चालू है. इसमें महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का गांव और परिवार भी शामिल है.
सुधार, सुरक्षा और न्याय हेतु महामहिम राष्ट्रपति को 16 मार्च 2022 और 26 अगस्त 2022 को पत्र और प्रमाण के साथ उचित जांच और कार्रवाई की मांग भी बेकार साबित हो रहा है. आपको भी 26 अप्रैल 2022 को पत्र लिखा था. मगर बेकार प्रमाणित हो रहा है. क्या हम भारत के आदिवासियों को प्रथा, परंपरा, रूढ़ी आदि के नाम से सती प्रथा की तरह मरने के लिए छोड़ देना चाहिए? क्या हमारे लिए भारत का संविधान, कानून, मानव अधिकार, न्याय और जनतंत्र नहीं है? क्या हमारे बीच में चालू नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा, ईर्ष्या द्वेष, महिला विरोधी मानसिकता, धर्मांतरण, वंशानुगत आदिवासी स्वशासन व्यवस्था, वोट की खरीद बिक्री आदि को समाप्त करने में भारत सरकार और राज्य सरकारें अक्षम हैं?
12 परिवार को सामाजिक बहिष्कार का झेलना पड़ा दंश
झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिला, डुमरिया प्रखंड/थाना के 12 आदिवासी (संताल) परिवारों को सामाजिक बहिष्कार का दंश झेलना पड़ा है. जिसके लिए गांव का ग्राम प्रधान अर्थात माझी बाबा दोषी है. जिसकी रिपोर्ट और जानकारी जिले के जिलाधीश (DM) के समक्ष स्थानीय सांसद विद्युत वरण महतो के नेतृत्व में अस्ती गांव के 12 परिवार के सदस्यों ने 11 जनवरी 24 को प्रदान किया. जिसका फोटो और समाचार 12 जनवरी 2024 के सभी स्थानीय खबर कागजों में प्रकाशित हुआ है. यह गंभीर मामला संविधान, कानून और मानव अधिकार पर हमला का है. इसका स्वत: संज्ञान कार्यपालिका, न्यायपालिका और सभी संबंधित पक्षों को लेकर त्वरित कार्रवाई अपेक्षित है. परंतु चूंकि यह मामला आदिवासी गांव-समाज का है इसलिए सभी इसपर पल्ला झाड़ने का काम करेंगे. इस प्रकार की घटनाएं रोज सर्वत्र चालू है. मगर कुछ भी सुधारात्मक, सकारात्मक ठोस कार्रवाई नहीं की जाती है. जो दुर्भाग्यपूर्ण है.
आदिवासियों को अपने रामराज में मरने के लिए छोड़ देंगे?
सती प्रथा जैसी क्रूर अमानवीय प्रथा को भी समाप्त करने में राजा राममोहन राय को अंग्रेजी हुकूमत ने साथ दिया था. 1829 में कानून बनाकर इसे लगभग 200 साल पहले रोकने का महान काम किया जा सका है. आज के लॉर्ड विलियम बेंटिक आप हैं. क्या आप आदिवासी गांव समाज में भी संविधान, कानून, मानव अधिकार और जनतंत्र को लागू करने में सहयोग करेंगे? या आदिवासियों को आपके रामराज में मरने के लिए छोड़ देंगे?.