जमशेदपुर : आदिवासी समाज बाहा सेंदरा पर्व की पुरानी संस्कृति को आज भी बखूबी निभा रहा हैं. फाल्गुन मास से पहले मनाए जाने वाले इस पर्व में संथाल समाज के लोग सेंदरा पर जाते है और उनके लौटने पर गांव में पानी की होली होती है. इस दिन ग्रामीण पानी की होली को पवित्र मानते है.
आदिवासी संथाल समाज की ओर से बाहा सेंदरा पर्व मनाया गया. इस दौरान ग्रामीण हाथों मे पारंपरिक तीर-धनुष और अन्य हथियार लेकर ढोल-नगाड़ा बजाते हुए गांव के आस-पास के जंगलों में घूमते हुए गांव पहुंचे, जहां महिलाओं ने पैर धोकर उनका स्वागत किया. जमशेदपुर शहर से दूर ग्रामीण क्षेत्र में आदिवासी संथाल समाज की ओर से बाहा सेंदरा पर्व मनाकर पानी की होली खेली गई. हाथ में पारंपरिक तीर-धनुष और अन्य हथियार के साथ ग्रामीण ढोल-नगाड़ा बजाते हुए गांव के आस-पास के जंगलों में घूमते हुए गांव पहुंचे. गांव में जगह-जगह महिलाएं अपने घरों के बाहर तेल और पानी से उनके पैर को धोकर उनका स्वागत की और पानी की बौछार कर पानी की होली खेली. इस दौरान ग्रामीणों को चना और हड़िया भी दी गई. (नीचे भी पढ़ें)
अपनी इस परंपरा संस्कृति के बारे में बताते हुए माझी परगना के दशमत हांसदा ने बताया कि झारखंड में संथाल समाज की ओर से बाहा सेंदरा और पानी की होली खेली जाती है. बाहा के दिन गांव के नायके यानी पंडित के घर ग्रामीण अपने तीर-धनुष और अन्य हथियार को पूजा के लिए रखते हैं और दूसरे दिन शुभ मुहूर्त देखकर तीर-धनुष हथियार लेकर गांव के आस-पास के जंगलों में सेंदरा करने जाते हैं. सेंदरा के दौरान कई जड़ी बूटियों की जानकारी भी उन्हें मिलती है, जिसे गांव में सभी के बीच बांटा जाता है. (नीचे भी पढ़ें)
वहीं, गांव के मुखिया राहुल बास्के को अपनी इस पुरानी परंपरा पर गर्व है. उनका कहना है कि सेंदरा से सकुशल लौटने पर गांव में महिलाएं उनका पैर धोकर स्वागत करती है और पानी की होली खेला जाता है. उन्होंने कहा कि उनके समाज मे रंग से होली नहीं खेली जाती है और पानी भी उसी पर डालते है, जिससे उनका संबंध होता है. पूरा गांव एक उमंग उत्साह में डूबा रहता है. इस त्योहार में गांव को विशेष तरीके से सजाया जाता है. यहां कि ग्रामीण महिलाएं कहती हैं कि यह त्योहार पूर्वजों की देन है, जिसे हम निभाते आ रहे है.