सरायकेला : नृत्य कला के क्षेत्र में सरायकेला-खरसावां जिला अब न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बना चुकी है. यहां की मशहुर छऊ नृत्य से सरायकेला शहर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है.
राजा राजवाड़ा के जमाने से शुरु हुई छऊ नृत्य को सीखने के लिये देश के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ विदेशों से भी लोग सरायकेला पहुंच रहे हैं. विदेशियों के लिये छऊ नृत्य शोध का विषय बना हुआ है. हर साल कई विदेशी इस नृत्य पर शोध करने के लिये पहुंचते हैं. छऊ नृत्य के कारण ही करीब 14 हजार की आबादी वाले इस शहर को लोग अब झारखंड की कला, संस्कृति की राजधानी के रुप में भी जानने लगे हैं. अब तो कोल्हान विश्व विद्यालय में छऊ नृत्य पर पाठय़क्रम भी शुरु होने वाला है.
इन्हें मिला पद्मश्री
छऊ नृत्य के लिये सरायकेला के छऊ गुरु सुधेंद्र नारायण सिंहदेव, केदार नाथ साहू, श्यामाचरण पति, पं गोपाल प्रसाद दुबे, मकरध्वज दारोघा, मंगला चरण मोहंती व शशधर आचार्या को पद्मश्री पुरस्कार मिल चुका है. पूरे देश में सरायकेला ही एक मात्र ऐसा जगह जहां एक साथ इतने सारे कलाकारों को पद्मश्री पुरस्कार मिला है. इसके अलावे एक दर्जन से अधिक कलाकारों को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका है.
100 से अधिक हैं कलाकार
कलाकार मुखौटा पहन कर पारंपरिक वाद्य यंत्र ढ़ोलक, नगाड़ा व शहनाई की धून पर नृत्य करते हैं. सरायकेला में छऊ के 100 के अधिक अंतरराष्ट्रीय कलाकार हैं. विदेशों से भी काफी संख्या में लोग छऊ नृत्य सीखने के लिये पहुंचते है.