जमशेदपुर : भाजपा के पूर्व सांसद सह आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने कहा कि फिलहाल मैं बीमारी से उभर रहा हूं. दिल्ली में हूं. आदिवासियों के प्रति अपनी लगाव और सच्ची प्रतिबद्धता के आलोक में 2024 के लोकसभा चुनाव पर खासकर झारखंड में आदिवासियों की राजनीतिक हालत पर एक टिप्पणी करना चाहता हूं. चूंकि अधिकांश मीडिया केवल एनडीए बनाम इंडिया की बात करते हैं. उनके पास आदिवासियों के लिए ज्यादा स्थान नहीं बचता है. अंततः कोई भी पक्ष वर्तमान चुनाव में जीते आदिवासियों की हार निश्चित है. क्योंकि दोनों ही पक्षों के पास आदिवासियों का पक्ष या एजेंडा नदारत है. आदिवासी केवल वोट बैंक बनकर रह गए हैं. खुद आदिवासी नेता भी आदिवासियों के सवाल पर ईमानदार नहीं दिखते हैं.
झारखंड, बंगाल, ओडिशा, बिहार, असम आदि प्रदेशोँ में कोई भी पार्टी 2024 की चुनाव जीते मगर आदिवासियों की हार निश्चित है. अतः सेंगेल किसी पार्टी को बचाने की जगह समाज को बचाने के लिए प्रयासरत है.
हासा, भाषा, जाति, धर्म बचाना आवश्यक
आदिवासी एजेंडा अर्थात हासा (भूमि, सीएनटी एसपीटी कानून बचाना), भाषा (झारखंड में संताली को राजभाषा बनाना), जाति (आदिवासी हितों के खिलाफ कुर्मी को ST बनाने पर रोक), धर्म (सरना कोड और मरांग बुरु को जैनों से मुक्ति) तथा रोजगार (डोमिसाइल, आरक्षण) और संवैधानिक अधिकार आदि बचाना है.
केजरीवाल से हेमंत की तुलना ठीक नहीं
मनी लॉन्ड्रिंग के मामले पर जरूर अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन आरोपित हैं. मगर केजरीवाल की तुलना हेमंत सोरेन से करना ठीक नहीं प्रतीत होता है. क्योंकि जहां केजरीवाल गुड गवर्नेंस और भ्रष्टाचारमुक्त दिखते हैं. तब वहीं पूरा सोरेन परिवार लूट, झूठ और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा हुआ है. सोरेन परिवार ने झारखंड को भी बेचा, मरांग बुरु को जैनों के हाथों बेचा. खुद संथाली भाषा और ओलचिकि लिपि विरोधी हैं. सरना पर टाल मटोल का रवैया, डोमिसाइल के नाम पर 1932 का झुनझुना थमा दिया है. CNT /SPT को तोड़ने का काम किया. पिता-पुत्र पांच बार मुख्यमंत्री बनने के बावजूद आदिवासी हितों के लिए कुछ भी ठोस नहीं किया.
झामुमो ने आदिवासियों को सबसे ज्यादा छला
भाजपा के पास चूंकि आदिवासियों के दिल की धड़कन नहीं है. जबरन आदिवासियों को हिंदू बनाना चाहती है. इसलिए सरना धर्म कोड नहीं दिया. अतः इसका लाभ हेमंत सोरेन की पार्टी को मिल सकता है. अन्यथा अबतक आदिवासियों का सर्वाधिक वोट लेकर जेएमएम ने आदिवासियों को ही सर्वाधिक छला है. आदिवासी समाज में व्याप्त नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा, महिला विरोधी मानसिकता, वोट की खरीद-बिक्री रोकने, माझी परगना स्वशासन व्यवस्था में संवैधानिक और जनतांत्रिक सुधार करने आदि में इनका कोई योगदान नहीं है.
सरना धर्म की मान्यता की घोषणा पर राहुल का किया स्वागत
राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार में सरना धर्म कोड की मान्यता का घोषणा की गई है. आदिवासी सेंगेल अभियान इसका स्वागत करता है. अंततः आदिवासी किसको वोट करें से ज्यादा चिंतनीय विषय है क्यों वोट करें.