ईचागढ़ : सरायकेला-खरसावां जिला के ईचागढ़ व कुकड़ू प्रखंड क्षेत्र में भी दिपावली की तैयारियां जोरों पर चल रही है. दीपावली में मिट्टी से बने दीया और मिट्टी के वर्तनों की खास मांग होती है. दीपावली के साथ ही सोहराई या बंदना पर्व भी मनाया जाता है. ग्रामीण क्षेत्र में भी चाईनीज दीया आ जाने से खासकर मिट्टी से दिया आदि बनाने वाले पारम्परिक कारीगरों को अपना स्वरोजगार छिनता हुआ दिखाई दे रहा है.
पुराने जमाने का चला रहे चक्की
एक तो सरकारी उदासीनता के चलते कुम्हार का काम युवा वर्ग करना नहीं चाहते हैं और उपर से ग्रामीण क्षेत्रों में बाजार भी उपलब्ध नहीं है. कुम्हार अपने पुराने जमाने का चक्की चलाकर मिट्टी का दिया, बर्तन बनाने को मजबूर हैं. नयी युवा पीढ़ी नये जमाने के साथ चलना चाहते हैं. ऐसे में पुराने चक्की को हाथ से चलाकर मिट्टी का सामग्री निर्माण करना पसंद नहीं करते। सरकार की ओर से परम्परागत मिट्टी से वर्तन आदि निर्माण करने वाले कारीगरों को प्रोत्साहित करने का काम नहीं किया जा रहा है और न ही सस्ते लोन आदि की व्यवस्था कर कुटीर उद्योग के रूप में विकसित कर स्वरोजगार को बढ़ावा दिया जा रहा है.
चायनीज दीया की मांग है ज्यादा
ईचागढ़ के बोड़ा, नदीसाई, कुकड़ी व ईचाडीह कुम्हार प्रधान गांव है. अधिकांश लोग मिट्टी के समान बनाने का काम करते हैं. मिट्टी का समान बेचने के लिए कारीगरों को अपने बाइक व साइकिल से लेकर दूर-दूर हाट बाजारों में जाकर बेचना पड़ता है. मिट्टी के कारीगर निताई कुम्हार ने बताया कि मिट्टी का दीपक, बर्तन आदि बनाया जा रहा है और हाट बाजारों में बेचकर अपना रोजी-रोटी चलाते हैं. चाईनीज दीया और बर्तन इसकी जगह ले रही है. इससे हमारी मजदूरी भर ही निकल पाती है.
घरेलू कुटीर उद्योग के रूप में विकसित करे सरकार
पारम्परिक काम को सरकार की ओर से किसी भी तरह का बढ़ावा नहीं मिल रहा है. इससे इस काम को अधिकांश लोग छोड़ रहे हैं. सरकार से इसे घरेलू कुटीर उद्योग के रूप में विकसित करने में पहल करने का मांग की. इसके बाद ही परम्परा चलती रहेगी.