जमशेदपुर : सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता वृहद छोटानागपुर को व्यापक अर्थ में समझने हेतु पुस्तक लिख रहे हैं जो लगभग पूरी हो चुकी है और दिसंबर के अंतिम सप्ताह में पाठकों के हाथ में होगी. यह पुस्तक महाविद्यालय के विद्यार्थियों के साथ ही शोधार्थी के लिए लाभप्रद साबित होगी. पिछले कई सालों से अधिवक्ता सुनील कुमार गुलिआर इस काम में लगे हुए हैं. (नीचे भी पढ़ें)
पुस्तक को समग्र रूप से पूरा करने के लिए झारखंड को करीब से समझने की कोशिश अधिवक्ता ने ईमानदारी से की तथा समाजशास्त्रियों, मानव विज्ञानविद और इतिहासविद के साथ ही सुदूर गांव में रहने वाले लोगों से मिलकर वैज्ञानिक आधार प्रदान किया. झारखंड राज्य के आदिवासी, अनुसूचित जनजाति, 1941 की जनगणना में आदिवासियों को हिंदू बताने की साजिश, आदिवासी महासभा बनाम सनातन आदिवासी महासभा के बीच का वैचारिक संघर्ष, आदिवासी धर्म, लोकुर कमेटी, छोटा नागपुर के आदि बुनियाद, आदिम कुड़मी, राड़ क्षेत्र की लिपि, झारखंडी संस्कृति पर प्रकाश डाला है. सुनील कुमार गुलिआर के अनुसार वृहद छोटानागपुर की संस्कृति ग्राम में जीवित है और वहां जो बुजुर्ग हैं वे इनसाइकिलोपीडिया से कम नहीं है बस उनके पास जाकर उनकी बातों को शब्द देने की उन्होंने कोशिश की है जिससे भावी पीढ़ी झारखंड को अच्छी तरह से समझ सके.