जमशेदपुर : चक्रधरपुर की रहने वाली हीरामुनी बारला को पति रंजन पूर्ति ने 14 फरवरी को जलाकर जान लेने की कोशिश की थी। बाद में हीरामुनी को ईलाज के लिए एमजीएम अस्पताल में भर्ती कराया गया था। यहां पर ईलाज में लापरवाही का मामला सामने आया था और उसकी मौत हो गई थी। इसके बाद पूरे मामले की जांच की मांग सीविल कोर्ट जमशेदपुर/सरायकेला की अधिवक्ता अमृताने
ने हाई कोर्ट के अधिवक्ता अनुप कुमार से की थी। मामले में पीआईएल भी दायर किया गया था। पीआईएल पर संज्ञात लेते हुए हाई कोर्ट ने इसकी जांच का जिम्मा झालसा के सचिव को सौंपा। इसके बाद एक टीम रविवार को एमजीएम अस्पताल पहुंची और पूरे मामले की जांच की।
डिप्टी सुपरीेटेंडेंट का लिया बयान
इस मामले में झालसा की टीम ने डिप्टी सुपरीटेंडेंट नकूल चौधरी का बयान लिया। नकूल चौधरी ने मौत के कारणों के बारे में टीम को बताया है। टीम की ओर से अन्य कई चिकित्सकों से भी पूछचाछ की गई है जिनकी घटना के दिन ड्यूटी थी।
एमजीएम अधीक्षक के चैंबर में हुई बैठक
टीम के अधिकारियों ने संबंधित कर्मचारियों का बयान लेने के बाद एमजीएम अधीक्षक के चैंबर में एक बैठक की। बैठक में सिटी एसपी सुभाष चंद्र जाट
, एएसपी कुमार गौरव, डिप्टी सुुपरीटेंडेंट नकूल चौधरी के अलावा अन्य उपस्थित थे।
जांच के दौरान अस्पताल में मची रही हड़कंप
एमजीएम अस्पताल में जबतक टीम रही, तबतक हड़कंप मची रही। कर्मचारियों को आने-जाने तक नहीं दिया गया। ओपीडी गेट को भी बंद कर दिया गया था। अस्पताल के मेन गेट को भी विभाग की ओर से बंद करवा दिया गया था।
जांच टीम की अधिवक्ता ने कहा कि एमजीएम अस्पताल प्रबंधन दोषी
जांच टीम की सदस्य अधिवक्ता अमृता ने कहा कि पूरे प्रकरण में एमजीएम अस्पताल प्रबंधन को ही वह दोषी मान रही हैं। सूचना मिलने के बाद वह अस्पताल में गई थी। तब 14 फरवरी को देखा कि जली महिला को बर्न वार्ड में भर्ती करने के बजाए उसे फर्श पर ही लिटा दिया गया था। दो दिनों तक स्लाइन भी नहीं चढ़ाया गया था। अधिवक्ता जब पहुंची तब देखा कि स्लाइन उसके बेड पर टपक रहा था। सुपरीटेंडेंट से मिली तब उसे बेड उपलब्ध कराया। अगर बेड नहीं थी तब उसे रिम्स या टीएमएच रेफर क्यों नहीं किया गया? अमृता का कहना है कि परिवार के लोगों के पास इतने पैसे भी नहीं थे वे एमजीएम अस्पताल पहुंचकर शव को लेकर जा सके।