चाईबासा : सारंडा के घोर नक्सल प्रभावित वन ग्राम में बसने वाले ग्रामीणों ने प्रशासन से वन ग्राम को राजस्व ग्राम बनाने की मांग तेज कर दी है। इस मांग को लेकर सारंडा में बसने वाले ग्रामीणों ने पश्चिम सिंहभूम उपायुक्त अरवा राजकमल से जिला समाहरणालय कार्यालय जाकर मुलाक़ात की और वन ग्राम की परेशानियों को बताते हुए एक मांग पत्र भी सौंपा। सारंडा के ग्रामीणों ने बताया की उन्हें वनग्राम में निवास करने के कारण कोई भी सरकारी सुविधा नहीं मिल पा रही है।
सारंडा के घोर नक्सल प्रभावित वन ग्राम के ग्रामीण
सरकारी योजनाओं को वनग्राम तक पहुँचाने में सबसे बड़ी बाधा वनग्राम का ठप्पा ही है। जबतक सारंडा के वनग्रामों को राजस्व ग्राम नहीं बनाया जाता तबतक यहाँ रहने वाले गरीब आदिवासियों का विकास संभव नहीं है। सारंडा के थलकोबाद, करमपदा, नवागाँव, नयागाँव, भनगाँव, कुमडी, बालीबा, दीघा, तिरिलपोशी, बिट्किलसोय आदि ऐसे कई गाँव सारंडा में मौजूद हैं जो आज भी आदिम काल की जिंदगी जीने को मजबूर हैं। बता दें की यह ईलाका घोर नक्सल प्रभावित है, गाँव और ग्रामीणों का विकास नहीं होने के कारण यहाँ नक्सली हावी रहते हैं।
अधिसूचना जारी पर नहीं बना राजस्व ग्राम
जंगल की देख रेख के लिए सौ साल पहले पूर्वज के समय से वे सारंडा के वनग्रामों में रहते आ रहे हैं। सारंडा वनग्राम निवासी विभिन्न गाँव के ग्रामीण मुंडाओं ने उपायुक्त को पत्र के माध्यम से बताया की अविभाजित बिहार राज्य काल में उन्हें वन ग्राम में जमीन पर मालिकाना हक भी दिया गया लेकिन इसके बावजूद सारंडा के विभिन्न वनग्राम को राजस्व ग्राम बनाने की पहल अब तक झारखण्ड में नहीं की गयी। ग्रामीण मुंडाओं ने यह भी बताया की केंद्र सरकार जनजातीय मामलों के विभाग द्वारा देश में वनग्रामों को राजस्व ग्राम बनाने की दिशा में एक अधिसूचना भी जारी की गयी, लेकिन इसका भी अनुसरण नहीं हो रहा है।
जल्द मिलेगा वनपट्टा
उपायुक्त अरवा राजकमल ने ग्रामीणों को आश्वस्त किया है कि उनकी समस्या को सरकार गंभीरता से ले रही है। सरकार के नियमों व अन्य अधिसूचना के अध्ययन के बाद एक अभियान के तहत इन वनग्रामों को राजस्व ग्राम बनाने की पहल की जाएगी ताकि वनग्राम निवासी आदिवासी ग्रामीणों को सरकारी लाभ आसानी से मिल सके। उन्होंने बताया की सरकार फिलहाल सारंडा के आदिवासियों को वनपट्टा देने को लेकर गंभीर है और इसके लिए कार्य प्रगति पर है।