चाईबासा।
झाऱखंड में एक 70 साल के बुजुर्ग ने बागवानी के लिए पानी नहीं मिलने से दुखी हो कर खुद तालाब खोद डाला ।यही नहीं इस दौरान उसकी पत्नी ने भी उसका साथ छोड़ दिया। इस वियोग में 40 साल की कड़ी मेहनत के बाद एक तालाब खोद डाला है। यही नहीं इसके लिए झारखंड सरकार ने उसे सम्मानित किया हैं।
झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम के कुमारडूंगी प्रखंड के कुमिरता गाँव का है। इस गाँव के लोवासाईं टोला में रहने वाले 70 साल के बुजुर्ग चुम्बरु तामसोय ने बागवानी के लिए पानी नहीं मिलने पर दुखी होकर खुद से तालाब की खुदाई कर दी है। बुजुर्ग चुम्बरु तामसोय की यह मेहनत और लगन एक दिन का नहीं था बल्कि 40 साल की कड़ी मेहनत के बाद बिना किसी के सहयोग से एक बड़ा सा तालाब इन्होंने खोद डाला है।
बागवानी के लिए तालाब मालिक ने पानी देने से मना करने पर लिया फैसला
चुम्बरु तामसोय बताया कि वर्ष 1975 में धान की फसल अनावृष्टि के कारण नहीं हो पाई थी।चारों तरफ सूखा पड़ चूका था। लोगों के घरों मे अनाज नहीं था। लोग भुखमरी के कगार पर थे। इस दौरान उनके घर की स्तिथि भी ख़राब हो गयी थी। इसके बाद वे उत्तरप्रदेश के रायबरेली में मजदूरी करने गए। इस दौरान नहर की खुदाई की. लेकिन ठेकेदार के शोषण के बाद वे वापस लौट आये। गाँव वापस लौटने के बाद उन्होंने बागवानी शुरू की लेकिन इसी दौरान पास के तालाब मालिक ने पानी देने से मना कर दिया। जिसके बाद उन्होंने खुद का तालाब खोदने का कड़ा संकल्प लिया।
तालाब खुदाई के दौरान उन्होंने शादी की। लेकिन पत्नी का साथ तालाब खुदाई में उन्हें नहीं मिला। पत्नी उसे तालाब खुदाई से रोकती थी। पत्नी उसे मुर्ख कहती थी, क्योंकि वह रात में भी ढिबरी लेकर की तालाब खुदाई करता था। पत्नी को यह सब पसंद नहीं था। आख़िरकार पत्नी उसे छोड़कर चली गयी। पत्नी के वियोग में उन्होंने तलाब की खुदाई और तेज कर दी। जब भी पत्नी की याद आती वह तलब की खुदाई और तेज गति से करना लगता। पत्नी के छोड़ जाने के गम को भुलाने के लिए वह तालाब की खुदाई लगा रहता था। न खाने की सुध रहती थी न पीने की, एक जुनून सवार हो चुका था। तालाब खोद अपनी जिद पूरी कर दिखाना की। आज तालाब गहरा खुद चूका है और तालाब बन कर तैयार है। इस तालाब में मछली पालन भी हो रहा है। गाँव के लोग स्नान भी करते हैं। लेकिन चुम्बरु तामसोय है किसी को मना नहीं करते हैं।
चुम्बरु तामसोय को इस बात का मलाल है की उसके अपने ही हो समाज के लोगों ने कभी उनकी मदद नहीं की. ना ही उन्हें तालाब खुदाई के लिए प्रोत्साहित किया। वर्ष 2017 में रांची में आयोजित मतस्य विभाग द्वारा आयोजित मतस्य कृषकों के राज्य स्तरीय प्रशिक्षण में उन्हें अकेले तालाब खोदनेे लिए सम्मानित किया गया था। लेकिन जब घर वापस लौटे तो आज तक मत्स्य पालन विभाग और सरकार ने उनकी सुध नहीं ली। वे बागवानी और वृद्धा पेंशन से किसी तरह अपनी जिंदगी की गाड़ी खिंच रहे हैं।