जमशेदपुर : संताल विद्रोह के महानायक चानकु महतो को उनकी 205वीं जयंती पर बिरसानगर में आदिवासी कुड़मी समाज बिरसानगर टेल्को नगर कमेटी की ओर से याद किया ग या और श्रद्धांजलि दी गई। इस अवसर पर मुख्य अतिथि जिला पूर्वी सिंहभूम सह सरायकेला खरसावां संयोजक मंडस्ली सदस्य मानगर प्रकाश महतो केटिआर ने अपने संबोधन में कहा अपना खेत अपना दाना पेट काटकर नहीं देंगे । खाजना चानकु महतो (1816-1856) जिस समय संथाल परगना में सिद्धो-कान्हू, फूलो -झानो के नेतृत्व में हूल आंदोलन चल रहा था ठीक उसी समय तत्कालीन गोड्डा में चानकु _महतो के नेतृत्व में भी कुड़मी, भुइया-घटवार-खेतोरी-संथाल समुदाय आंदोलनरत थे। शहीद चानकु महतो का जन्म 9 फरवरी 1816 को गोड्डा स्थित रंगमटिया गांव में हुआ था । देश में अंग्रेज रैयतों के जमीन छीनकर महाजनों को दें रहे थे और आदिवासियों के प्रथागत परंपराओं पर रोक लगा रहे थे इसके विरुद्ध चानकु महतो ने मूल रैयतों को संगठित कर विरोध करने लगेफिर चानकु महतो ने अपने आंदोलन को शहीद सिद्धो -कान्हू के संथाल हुल के साथ जोड़कर अंग्रेजों, महाजनों के खिलाफ आवाज बुलंद करने लगे। चानकु महतो के नेतृत्व में 1855 के अश्विन महीना में गोड्डा के सोनार चौक में एक बड़ी सभा आयोजित की गयी थी, जिसकी सुचना मिलते ही ब्रिटिश सेना, घुड़सवार और नायब के सिपाही ने सभास्थल को घेर लिया, इस मुठभेड़ मे कई अंग्रेज मरे और कई आंदोलनकारी शहीद हुएफिर कुछ समय बाद बाड़ीडीह नामक गांव से चानकू महतो को गिरफ्तार कर लिया गया था। 15 मई 1856 को गोड्डा के राजकचहरी स्थित कझिया नदी किनारे सरेआम फांसी पर लटका दिया गया और इसी के साथ चानकु महतो हमेशा का लिये अमर हो गये। देश की बात हो,झारखण्ड की बात हो, जल जंगल जमीन हो या आदिवासीयत की बात कुड़मियों ने हमेशा बढ़ चढ़कर आंदोलन किया है और इस माटी की रक्षा के लिये क़ुरबानी दी है लेकिन अफ़सोस की इतिहास लिखने वालों ने कुड़मियो की अवहेलना की लेकिन जिस इतिहास को दबाया गया उस गौरवगाथा को जल्द ही सबके सामने लाया जाएगा। कार्यक्रम का आयोजन धीरेंद्रनाथ महतो की अध्यक्षता में की गई।
ये थे मौजूद
कार्यक्रम में नीरानंद महतो केटिआर, पिंटू महतो, प्रभाष चंद्र महतो बंसरिआर, देवीका महतो,टिआसा महतो काड़ुआर, प्रतिक महतो, शयन, अनुष्का,सुभम,रोसि,मंगल आदि उपस्थित थे।