जमशेदपुर :पोटका विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी को टिकट नहीं दिए जाने के कारण इस क्षेत्र के कांग्रेसी अब मुखर होने लगे हैं. वे गठबंधन के बारे में खुलकर बोलने लगे हैं. क्या वे सिर्फ झंडा ढोने के लिए ही पार्टी को चला रहे हैं? क्या उन्हें कभी प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं मिलेगा?
पोटका विधानसभा क्षेत्र में पार्टी का जनाधार तैयार करने वाले कांग्रेसी अब खुलकर कहने लगे हैं कि चुनाव के समय ही परीक्षा की घड़ी होती है. उन्हें परीक्षा में ही बैठने का मौका नहीं दिया जा रहा है. गठबंधन का नाम लेकर उन्हें परीक्षा से वंचित रखा जा रहा है.
2009 और 2019 में था गठबंधन
2005 और 2019 की बात करें तो गठबंधन के कारण पोटका से कांग्रेस प्रत्याशी को चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला था. 2014 में चुनाव लड़ने का मौका जरूर मिला था, लेकिन जीत का सेहरा हासिल नहीं हो सका. तब सुबोध सिंह सरदार को टिकट दिया गया था.
झारखंड बनने के बाद भाजपा को 3 बार और झामुमो को 2 बार मिला मौका
झारखंड अलग राज्य बनने के बाद पोटका विधानसभा में भाजपा को तीन बार प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है. तीनों बार मेनका सरदार ने दमदार जीत दर्ज कराई थी. इसी तरह से झामुमो की बात करें तो अमूल्यो सरदार और एक बार संजीव सरदार को मौका मिला है.
सहानुभूति वोट से जिते थे अमूल्यों सरदार
अमूल्यो सरदार की बात करें तो उन्हें पोटका विधानसभा की जनता का सहानुभूति वोट मिला था. चुनाव के ठीक पहले ही उन्हें एक मामले में जेल भिजवा दिया गया था. बावजूद उन्होंने मेनका सरदार को हराया. संजीव सरदार भी मेनका सरदार को हराकर ही विधायक बने हैं.
24 सालों में तीन विधायकों को मिला मौका
झारखंड अलग राज्य बनने के बाद 24 सालों के अंतराल में कुल तीन नेताओं को पोटका से विधायक बनने का मौका मिला. पहला मेनका सरदार, दूसरा अमूल्यो सरदार और तीसरा संजीव सरदार को. 2000 में मेनका सरदार पहली बार भाजपा की टिकट पर चुनाव जीती थीं. तब चुनावी मैदान में कृष्णा मार्डी और सूर्य सिंह बेसरा भी उतरे हुए थे. 2005 में झामुमो प्रत्याशी अमूल्यो सरदार से हार गई थी. इसके बाद 2019 की चुनाव में संजीव सरदार से हार गईं. इस बीच तीन बार वह पोटका विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं.