जमशेदपुर। श्रीविद्या शक्ति सर्वस्वम, चेन्नई के तत्वाधान में श्रीमाता ललिताम्बिका राजराजेश्वरी त्रिपुरसुंदरी की अत्यंत महत्ती कृपा से बिष्टुपुर राम मंदिर में चल रहे नौ दिवसीय श्री अम्बा यज्ञ नव कुण्डात्मक सहस्त्रचंडी महायज्ञ एवं श्रीमद देवी भागवत, कथा ज्ञान यज्ञ के छठवें दिन सोमवार को व्यास पीठ से विजय गुरूजी ने हैहय, सूर्यवंश का वर्णन, शक्तिपीठों का वर्णन की कथा प्रसंग का विस्तार से वर्णन किया। कथा के दौरान झांकियांे ने श्रोताओं को आनंदित किया। छठवें दिन सोमवार को भी 37 यजमानों द्धारा श्री अम्बा यज्ञ नव कुण्डात्मक सहस्त्रचंडी महायज्ञ किया गया। मंगलवार 3 जनवरी को हिमालय को देवी गीता का उपदेश, मां पार्वती का प्राकट्य, शिव पार्वती विवाह महोत्सव कथा का वर्णन होगा। शक्तिपीठों का प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कहा कि इसे सुनने, सुनाने और पाठ करने से पितृदेवों को सदगति व उत्तमगति इहलोक और परलोक दोनों में शांति मिलती हैं। जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, उनके वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ का उदय हुआ। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है तो देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है, वहीं तन्त्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण के मुताबिक 51 शक्तिपीठ में से कुछ विदेश में भी स्थापित हैं। भारत में 42, पाकिस्तान में 1, बांग्लादेश में 4, श्रीलंका में 1, तिब्बत में 1 तथा नेपाल में 2 शक्तिपीठ हैं।
कायरता और वीरता में अंतरः- गुरूजी ने आगे कहा कि राजा शर्याति अपने परिवार समेत एक बार वन विहार के लिए गए। एक सुरम्य सरोवर के निकट पड़ाव पड़ा। बच्चे इधर-उधर खेल, विनोद करते हुए घूमने लगे। मिट्टी के ढेर के नीचे से दो तेजस्वी मणियाँ (जुगनू की तरह) जैसी चमकती देखीं तो राजकन्या को कुतूहल हुआ। उसने लकड़ी के सहारे उन चमकती वस्तुओं को निकालने का प्रयत्न किया। किंतु तब उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उन चमकती वस्तुओं में से रक्त की धारा बह निकली। सुकन्या को दुःख भी हुआ और आश्चर्य भी। कायरता क्षमा माँगती है और वीरता क्षतिपूर्ति करने को प्रस्तुत रहती है। सुकन्या ने अपने अपराध की गुरुता को समझा और उसके अनुसार प्रायश्चित करने का भी साहसपूर्ण निर्णय कर डाला। शरीर कष्टों की चिंता न करते हुए प्रायश्चित की अनुपम परंपरा स्थापित करते हुए च्यवन की क्षतिपूर्ति का जो साहस सुकन्या दिखा सकी उससे उनका मस्तक गर्वाेन्नत हो गया। विवाह की परंपरा पूर्ण हो गई। सुकन्या अंधे और वृद्ध पति को देवता मानकर प्रसन्न मन से धैर्यपूर्वक उनकी सेवा करने लगी। देवता उस साधना से प्रभावित हुए और अश्विनीकुमारों ने च्यवन की वृद्धता और अंधता दूर कर दी। सुकन्या का जीवन सार्थक हो गया।
सूर्यवंश की वृद्धि करने वाले इश्वाकु का प्रादुर्भावः- उन्होंने कहा कि जगदम्बा की कृपा से सब मनोरथ पूर्ण होते हैं। ब्रह्मा जी ने पहले देवी शिवा का ध्यान करके दस हजार वर्षाे तक तपस्या की और इनसे महान शक्ति प्राप्त करके शुभ लक्षणों वालों मानस पुत्र उत्पन्न किये। उन मानस पुत्रों में सर्वप्रथम मरीचि उत्पन्न हुए, जो सृष्टि कार्य में प्रवृत हुए। उनके पुत्र वैवस्वत मनु थे। सूर्यवंश की वृद्धि करने वाले इश्वाकु का प्रादुर्भाव हुआ। मनु के नौ पुत्र और उत्पन्न हुए। जिनके नाम इक्ष्वाकु, नाभाग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रांशु, अरिष्ट, करूष, तथा सुद्युम्न कन्या के रूप में उत्पन्न हुए थे, इसलिए उन्हें राज्य का भाग नहीं मिला।