ईचागढ़ : सरायकेला-खरसावां जिला के ईचागढ़ प्रखंड क्षेत्र के विस्थापित गांवों के लोगों का हाल बेहाल है. साइक्लोनिक सर्कुलेशन के बाद चांडिल डैम का जलस्तर बढ़ने से दर्जनों गांव जलमग्न हो गया था. इससे सैकड़ों घर जमींदोज हो गया. प्रभावित गांवों में जलस्तर घटने के बाद भी बेघर हुए विस्थापित परिवार प्लास्टिक का तंबू लगाकर रहने को विवश हैं. खेती बाड़ी भी नष्ट हो जाने से परिवार का भरण-पोषण के लाले पड़ रहे हैं.
छिन गया जीने का सहारा
बाबू चामदा, काली चामदा, ईचागढ़, मैसड़ा, कुमारी आदि गांवों में डैम का जलस्तर घटने के बावजूद घर विहिन हुए लोगों का सुधी लेने वाले कोई नहीं है. विभागीय उदासीनता का दंश झेलने को लोग मजबूर हैं. अपने खेतों की धान, सब्जी, मुर्गा, मुर्गी, बत्तख, बकरी आदि पशु धन भी जलमग्न से नष्ट हो गया. लोगों का जीने का सहारा ही छीन गया है.
उदासीन हैं पुर्नवास पदाधिकारी
पुनर्वास पदाधिकारी से लेकर विभागीय पदाधिकारी विस्थापितों का सुधि लेना तक उचित नहीं समझा. लोग अपने भरण-पोषण के लिए जद्दोजहद में लगे हुए हैं. बेघर हुए तंबू में दिन काट रहे विस्थापित परिवारों को पुनर्वासित करने के लिए विभाग द्वारा कोई कदम नहीं उठाए जाने से लोगों में सरकार और विभाग पर नाराजगी देखा जा रहा है.
स्कूल नहीं जा रहे बच्चे
विस्थापित बीरेन महतो ने कहा कि बेघर हुए लोग विस्थापित परिवारों का सुधि लेने भी कोई पदाधिकारियों द्वारा कुछ कदम नहीं उठाया जा रहा है. सब उजड़ जाने के बाद लोग तंबू बनाकर रह रहे हैं. हमें पुनर्वास स्थलों पर बसाने और रोजी रोजगार का व्यवस्था कराया जाए. हम विस्थापितों की दयनीय स्थिति ऐसी हो गयी है कि परिवार चलाना दूभर हो गया है. अब भी स्थिति ऐसी है कि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई तक नहीं हो पा रही है. सरकार को तत्काल कदम उठाकर इस स्थिति से निजात दिलाना चाहिए.