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… अगर अमरेंद्र होते तब एसईआरएमसी कुछ और होता, जानिए कैसे बनाई थी पहचान
अमरेंद्र कुमार 2010 में (इसईआरएमसी) से जुड़े थे. अपने काम और मेहनत के बूते ही 2012 में चक्रधरपुर रेल मंडल के डेहडक्वार्टर ब्रांच के सचिव बनाए गए थे. 29 दिसंबर 2014 में बीमारी के कारण उनका निधन हो गया था. वर्तमान में उनकी पत्नी अनुकंपा पर कर्मसियल विभाग में नौकरी कर रही है. दो बच्चे भी हैं जो पढ़ाई कर रहे हैं.
जमशेदपुर : अमरेंद्र कुमार मिश्रा ने झारखंड अलग राज्य बनने के पहले 1998 में रेलवे की नौकरी हासिल की थी. आज वे इस दुनिया में नहीं है. अगर वे होते तब एसईआरएमसी कुछ होता. उन्होंने अपने कार्यकाल में जो किया था उसे आज भी रेल कर्मचारी याद करते हैं.
अमरेंद्र कुमार मात्र चार सालों में ही नये रेल कर्मचारियों के लिए चहेता बन गए थे. कारण यह है कि किसी भी रेल कर्मचारी की समस्या को लेकर सबसे पहले समाधान के लिए पहुंचते थे.
नए रेल कर्मचारियों को किया जोड़ने का काम
अमरेंद्र मिश्रा ने एसईआरएमसी ज्वाइन करने के साथ ही नए रेल कर्मचारियों को जोड़ने का काम शुरू किया था. काफी कम समय में ही उनकी पहचान युवा रेल नेता के रूप में बन गई थी.
अधिकारियों को देते थे टका सा जवाब
अमरेंद्र रेल कर्मचारियों की समस्या को लेकर समाधान की कोशिश करते थे और रेल के वरीय अधिकारियों को भी टका सा जवाब देने से नहीं चुकते थे. अस्पताल की समस्या हो या लोको शेड की. आज भी उनकी चर्चा होती है.
2012 में जीता था रेलवे इंस्टीट्यूट का सभी 9 सीट
वर्ष 2012 में रेलवे इंस्टीट्यूट का चुनाव हुआ था. तब अमरेंद्र के कारण ही सभी 9 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. इसमें से सबसे ज्यादा वोट अमरेंद्र को ही मिला था.
कम समय में बनाई थी अलग पहचान
अमरेंद्र मिश्रा ने काफी कम समय में ही अपनी अलग पहचान बना ली थी. रेल कर्मचारियों को उनका स्वभाव बेहद पसंद था. मिलनसार के साथ-साथ रेल कर्मचारियों की हर तरह की गतिविधियों में शरीक होते थे. उनके भीतर उंच-नीच का भेदभाव तो कभी रहा ही नहीं.
आज चोटी पर होते अमरेंद्र
अगर अमरेंद्र कुमार आज जीवित होते तब वे एसईआरएमसी में चोटी पर होते. चक्रधरपुर रेल मंडल में ही नहीं बल्कि कम-से-कम जोनल में टॉप नेताओं में शुमार होते.
यूं ही नहीं 10 सालों से लग रहा रक्तदान शिविर
अमरेंद्र ने जो अपना प्रभाव छोड़ा है उसी का नतिजा है कि आज 10वें साल भी रक्तदान शिविर का आयोजन किया जा रहा है. इसमें सबसे खास बात यह है कि अमरेंद्र के नाम पर ही रेल कर्मचारी शिविर में खींचे चले आते हैं.