चाईबासा : आज हम बात करेंगे दो ऐसे कोरोना योद्धाओं की जो अपनी जान जोखिम में डालकर कोरोना से दूसरों की जान बचाने का काम कर रहे हैं। ऐसी ही दो कोरोना योद्धा गोइलकेरा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में हैं। एएनएम सारा डेमता और सहिया सुनीता चांपिया। ये दोनों महिला स्वास्थ्यकर्मी अपनी जान जोखिम
में डालकर रेलवे ब्रिज पार करती हैं। यह इतना खतरनाक होता है की आगे या पीछे से कोई ट्रेन अचानक आ जाये तो जान बचाना बेहद मुश्किल है, बावजूद ये दोनों स्वास्थ्यकर्मी अपनी जान की परवाह किये बिना लोगों को टीका लगाकर उनकी जान बचाने का काम कर रही हैं। गोइलकेरा के नक्सल प्रभावित और सुदूरवर्ती गांवों में लोगों को कोरोना का टीका देने के लिए महिला स्वास्थ्यकर्मियों को जान जोखिम में डालकर रेलवे के पुल को पैदल पार करना पड़ता है। प्रखंड के दुगुनिया
और रायबेड़ा जैसे गांवों में आने-जाने के लिए सड़क नहीं रहने के कारण रेलवे के पुल से गुजरना उनकी मजबूरी है। रेलवे का यह पुल हावड़ा-मुंबई मुख्य रेलमार्ग पर कारो नदी के उपर बना हुआ है। नदी पर गांव को सड़क से जोड़ने वाली कच्ची पुलिया थी। जो बरसात में बह गई है। महिला स्वास्थ्यकर्मियों ने बताया कि पुल को पार करने के दौरान डर बना रहता है। इसलिए वे इसे तेजी से पार करती हैं। उनके कंधे पर वैक्सीन का बॉक्स भी होता है। पैदल चलते हुए थक जाने पर बॉक्स को डंडे के सहारे कंधे पर ढोना पड़ता है।