ईचागढ़ : जी हां चड़क पूजा का नाम सुनते ही कलेजा मुंह को आ सकता है. पीठ पर हुक घुसेड़ना और 40 फीट उंची आसमान पर भक्त को झूले की तरह घुमाना किसी जोखिम से कम नहीं है. यह पुरानी परंपरा है और इसका निर्वहन आज भी ईचागढ़ में किया जा रहा है. रविवार को ईचागढ़ प्रखंड क्षेत्र के लावा गांव में भक्ती, श्रध्दा और विश्वास का अनूठा संगम देखने को मिला. लावा गांव में बूटन ग्वालीन ने दहकती आग में चलकर भक्ति का परिचय दिया. यहां चड़क पूजा के उपलक्ष्य में दहकती आग में चलकर भगवान शिव को खुश करने का रिवाज है. कई बार आग में चलने से भी कहीं नहीं जलता है.
यह भगवान भोलेनाथ का कृपा है, जो हर वर्ष आग में चलकर भक्ति का परिचय देते हैं. भोक्ताओं ने अपनी पीठ पर लोहे का हुक घुसेड़कर करीब 40 फीट उंचे लकड़ी से बने चरखा पर आसमान पर झुलकर भक्ति का प्रदर्शन किया. बिना कोई दर्द के हंसते-हंसते लोहे का हुक अपने पीठ की चमड़ी पर घुसेड़कर उसी के सहारे लकड़ी के डंडे पर टांग कर घुमाया गया.
नहीं होता दर्द का अहसास
बाबा भोलेनाथ का कृपा से सुई के उतने भी दर्द का एहसास नहीं होता. लोहे के हूक को पीठ पर घुसेड़कर आसमान पर लटकते हुए घुमाने के बाद भी खून नहीं निकला है. दो चार दिनों में बिना दवा के घाव भर जाता है. से लोग दैविक करिश्मा बताते हैं.
रात का छऊ नृत्य
रात को छऊ नृत्य सहित कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया. भक्त सोमा गोप व सागर दास ने बताया कि यहां प्राचीन काल से ही यह परम्परा चली आ रही है. आज बुटन ग्वालीन ने आग पर चलकर आस्था का परिचय दिया है. आग पर चलते हुए एक खरोंच तक नहीं आई. करीब एक दर्जन भक्त एक महिने से विशेष नियम से रह रहे थे.