ICHAGARH : सरायकेला-खरसावां जिला के ईचागढ़ व कुकड़ु प्रखंड क्षेत्र की लाइफ लाइन माने जाने वाली स्वर्णरेखा नदी भीषण गर्मी से पूरी तरह से सूख गई है. बालू की सफेद चादर से ढके स्वर्णरेखा नदी का मानो अस्तित्व ही मिट गया है और एक रेगिस्तान का मंजर देखने को मिल रहा है. यहां जाननेवाली बात यह भी है कि स्वर्णरेखा नदी के पास ही नीचे चांडिल डैम में विशाल जल का भंडारण है और ऊपर कांची नदी का भी पानी आता है. बावजूद इसके कुकड़ु और ईचागढ़ प्रखंड क्षेत्र में स्वर्णरेखा नदी जैसे एक-एक बूंद पानी को तरस रहा है.
जद्दोजहद कर फसलें बचाने में लगे किसान
बता दें कि ईचागढ़ और कुकडू क्षेत्र में 90 प्रतिशत लोग कृषि पर आधारित है. नदी किनारे बसे गांव के किसान रबी फसल कर अपना कृर्षि उपज उगाते हैं. कड़ी मेहनत कर स्वर्णरेखा नदी के जल के भरोसे फसल उगाते हैं. वहीं इस वर्ष नदी सूख जाने से किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीर साफ झलक रही है. स्वर्णरेखा नदी में अभी कुंए की तरह गढ्ढा खोदकर पटवन करना पड़ रहा. किसान अपने फसलों को बचाने के लिए पंप सेट लगाकर गढ्ढों से पानी पटवन करने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं. किसान खासे परेशान हैं, चूंकि अब तक एक भी भारी बर्षा नहीं होने से डैम के पानी को लिफ्ट के माध्यम से खेतों में पहुंचाने की व्यवस्था नहीं की जा सकती है. वहीं, कड़ी धूप और जल के अभाव में खेती मर रहा है. पानी के गिरते स्तर से फसल बर्बाद होने का डर किसानों को सता रहा है. क्षेत्र के कुकडू के सापारूम, तिरूलडीह, सपादा तथा ईचागढ़ के बामनडीह, जारगोडीह, खीरी, रायडीह जैसे इलाको में नदी किनारे करीब सौ एकड़ जमीन पर किसान खेती कर रहे हैं, मगर इस वर्ष काफी गर्मी में किसानों को पटवन के पानी के लिए तरसना पड़ रहा है.
क्या कहते हैं किसान
पूर्व मुखिया सह किसान तपन सिंह मुंडा ने बताया कि किसान केसीसी ऋण लेकर रबी फसल कर रहे हैं. भीषण गर्मी से स्वर्णरेखा नदी सूख गया है. किसानों के लिए अपना फसल बचाना चुनौती साबित हो रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार को लिफ्ट के माध्यम से किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराना चाहिए. ताकि किसानों को थोड़ी बहुत भी राहत मिल सके.