जमशेदपुर : पूर्व सांसद सह आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने भारत के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर कहा है कि मणिपुर में हुई जातीय हिंसा दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है. मगर जिस प्रकार 53% मैतेई जाति को मणिपुर में एसटी अर्थात अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की जद्दोजहद को तूल दिया गया. उससे पूर्व से अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल 40% कुकी एवं अन्य आदिवासी को अपने अस्तित्व, पहचान, हिस्सेदारी के लुटने मिटने की चिंता स्वाभाविक है. जिनको अबतक 31% आरक्षण प्राप्त है. अंततः दुर्घटना अस्वाभाविक नहीं है.
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झारखंड में भी आदिवासियों के अस्तित्व पर है खतरा
सालखन मुर्मू का कहना है कि झारखंड, बंगाल, ओड़िशा आदि आदिवासी बहुल क्षेत्रों में भी असली आदिवासियों (संताल मुंडा हो खड़िया उरांव भूमिज पहाड़िया आदि) के बीच भी चिंता जगजाहिर है. चारो तरफ विरोध सभा और प्रदर्शन जारी है. भीतर-भीतर एक जाति विशेष के विरोध का ज्वालामुखी धधक रहा है. महतो/कुड़मी जैसी कुछ एक जाति जबरन एसटी बनना चाहते हैं और उन्हें वोट बैंक की राजनीतिक लोभ और लालच में कतिपय राजनीतिक दल अनुशंसा कर उन्हें उकसा रहे हैं. यह गलत है. यह असली आदिवासियों के लिए खतरे की घंटी है.
संविधानसम्मत ठोस नीति बने
आदिवासी सेंगेल अभियान का भारत सरकार से निवेदन है एसटी सूची में किसी जाति को शामिल करने के लिये अविलंब एक संविधानसम्मत ठोस नीति का निर्धारण करें. जो पूर्व से अवस्थित एसटी के लिए खतरे का सबब नहीं बनें. अन्यथा वोट बैंक की राजनीति का शिकार होकर असली आदिवासियों की अस्तित्व, पहचान, हिस्सेदारी का कत्लेआम निश्चित जैसा है. यह बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि देश में कुछ एक ऊंची जातियां भी अब आरक्षण के लोभ और लालच में अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल करने की जद्दोजहद में असली आदिवासियों को बर्बाद करने पर तुले हैं.
विश्व सरना धर्म कोड जनसभा
असली आदिवासियों के रक्षार्थ भारत सरकार को गंभीर एवं संवेदनशील होना बहुत जरूरी है. अन्यथा असली आदिवासियों को वोट बैंक की बलि चढ़ाना कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. इस गंभीर मुद्दे को 30 जून 2023 को कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में आहूत “विश्व सरना धर्म कोड जनसभा” में लाखों लोगों के बीच राष्ट्रीय स्तर पर उठाने का फैसला लिया गया है.
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