दिल्ली : भारत की ओर से चांद पर लैंड करने के लिये चंद्रयान-3 को भेजा गया है जो 42 के बाद पहुंचेगा वहीं सोवियत संघ का चंद्रयान मात्र 36 घंटे में ही कैसे पहुंच गया. यह सवाल खड़े कर रहा है. आखिर भारत इतना पीछे क्यों है. इसका मुख्य कारण भौतिक विज्ञान और लागत को ही बताया जा रहा है.
धरती से चांद की बात करें तो इसकी दूरी 3.83 लाख किलोमीटर है. नासा की ओर से यह दूरी एक सप्ताह या चार दिनों के भीतर ही पूरी कर लिया जाता है, लेकिन इसरो इसमें पीछे क्यों है.
ज्यादा दिन लगने पर खर्च आता है कम
बताया गया है कि इसरो भी डायरेक्टर चांद पर चंद्रयान-3 को भेज सकता था, लेकिन इसमें खर्च ज्यादा आता है. नासा की तुलना में इसके प्रोजेक्ट सस्ते हैं. ऐसे रॉकेट बनाने में हजारों करोड़ रुपये लग सकते हैं. इसी को ध्यान में रखते हुये इसरो का प्रोजेक्ट किफायती होता है.
ईंधन की मात्रा होती है सीमित
अंतरिक्ष यान में ईंधन की मात्रा सीमित होती है. इस कारण से उसे चांद के चारों तरफ घुमाया जाता है. ऐसे में ईंधन की खबत कम होती है. अंतरिक्ष यान 1600 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से घुमती है. वह धरती के चारों तरफ घुमते हुये बार-बार ऑर्बिट मैन्यूवरिंग करता है.
चीन ने चांगाई को पहुंचाया था 4 दिनों में
चीन की बात करे तो 2010 में चांगई-2 मिशन को चार दिमों में चांद पर पहुंचा दिया था. इसके बाद चांगई-3 को भी पहुंचाया या था. इसी तरह से सोवियत संघ की ओर से पहला लूनर मिशन लूना-1 को सिर्फ 36 घंटे में ही पहुंचा दिया था. अमेरिका का अपोलो-11 कमांड माड्यूल कोलंबिया भी चार दिनों में ही चांद पर पहुंच गया था.