जमशेदपुर : कहते हैं, हर इंसान के भीतर एक कवि छिपा होता है, बस उसे पहचानने और मंच देने की जरूरत होती है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है पोटका प्रखंड के सुदूरवर्ती गांव बरदागोड़ा की बेटी प्रतीक्षा महतो ने. कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय, बहरागोड़ा में अध्ययनरत प्रतीक्षा ने मात्र कक्षा 7 में पहली कविता लिखी और अब वह एक 35 कविताओं के संग्रह की रचयिता बन गई हैं.
शिक्षकों ने बढ़ाया हौसला, अंदर की कविता खुद बाहर आई
प्रतीक्षा जब कक्षा 7 में थीं, तब उनके शिक्षक ने कविता लिखने के लिए प्रेरित किया. उसी समय उसने ‘प्लूटो’ नामक अपनी पहली कविता लिखी, जिसने उसकी लेखनी को पहचान दी. इसके बाद जब वह कक्षा 8 में पहुंचीं, तो एक दिन सुबह घर में बैठकर एक के बाद एक 35 कविताएं लिख डालीं. उसने ये सभी कविताएं अपने विद्यालय के शिक्षकों को दिखाई, जिन्होंने उनकी खूब सराहना की.
प्रतीक्षा के पिता शिशिर कुमार महतो ने बेटी की कविताओं को एक पुस्तक “आदर्शता” के रूप में प्रकाशित करवाया. इस कविता संग्रह का विधिवत विमोचन सोमवार को प्रसिद्ध साहित्यकार सुनील कुमार दे और अन्य विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति में किया गया. विमोचन समारोह में माता आश्रम के अध्यक्ष कृष्णा पद मंडल, समाजसेवी शंकर चंद्र गोप, जन्म जेय सरदार समेत अन्य लोग भी उपस्थित थे.
समाज, परिवार और परिवेश पर आधारित कविताएं
प्रतीक्षा की कविताएं सिर्फ भावनात्मक नहीं, बल्कि सामाजिक सरोकारों से भी जुड़ी हैं. उसने परिवार, समाज और परिवेश को केंद्र में रखकर कविताएं लिखी हैं, जिससे पाठक सहज रूप से जुड़ पा रहे हैं. उसकी सरल भाषा और गहरी सोच ने पाठकों और शिक्षकों को प्रभावित किया है.
अब प्रतीक्षा अपने दूसरे कविता संग्रह की तैयारी कर रही हैं. उसका सपना है कि वह एक दिन बड़ी लेखिका बनें और झारखंड के ग्रामीण अंचल की आवाज को शब्दों में ढाल सकें.
सुनील कुमार दे और समाजसेवियों ने की सराहना
साहित्यकार सुनील कुमार दे ने कहा कि मनुष्य के भीतर कवि पहले से होता है, जरूरत होती है केवल उसे बाहर लाने की. प्रतीक्षा ने यह साबित कर दिया कि उम्र प्रतिभा की सीमा नहीं होती. वहीं समाजसेवी शंकर चंद्र गोप ने कहा कि प्रतीक्षा आनेवाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा हैं. प्रतीक्षा की मां ने कहा कि उन्हें अपनी बेटी पर गर्व है. इतनी छोटी उम्र में उसने जो किया है, वह किसी बड़े लेखक से कम नहीं.