जमशेदपुर।
झारखंड के पूर्वी सिहभूम जिला के पोटका प्रखंड के नुआग्राम के ग्रामीण आज भी मकर पर्व के दिन नदी में स्नान करके घर जाते है और पुजा -पाठ करके प्रसाद ग्रहण कर भोजन करते है। यही नही स्नान कर घर जाते समय पुरुष समुदाय के लोग कीर्तन करते जाते है। जिसे मकर कीर्तन कहा जाता है।
जैसे कि मान्यता है पौष संक्रांति के दिन भगिरथ माँ गंगा को मर्त्य धाम में तपस्या कर के लाये थे | उनके पुत्रों एवं वंशजों को मुक्ति दिलाने के लिए गंगासागर के कपिल मुनि के आश्रम में। इसलिए माँ गंगा का और एक नाम भगिरथ भी है। माँ गंगा का स्पर्श पाकर सागर वंश का उद्धार हुआ था इसलिए पौष संक्रांति में गंगा स्नान करने का इतना महत्व है। लोग गंगा स्नान करने नहीं जा पाते हैं इसलिए गाँव के लोग कोई नदी अथवा तालाब में जाकर नहाते हुए नए बस्त्र पहनते हैं और मकर कीर्तन करते हुए घर आते हैं। यह धार्मिक परंपरा आज भी झारखंड के पूर्वी सिहभूम जिला के पोटका प्रखंड के नुआग्राम में जीवित हैं। संक्राति की सुबह गांव के कीर्तन मंडली सुनील कुमार दे के नेतृत्व में गांव के तालाब से मकर कीर्तन करते हुए आये। साहित्यकार और शिल्पी सुनील कुमार दे ने मकर कीर्तन में कहा,,पौष संक्रांति दिने शोचिर नंदन,
गंगा स्नाने चोलीलेन लोए भक्तगण।
चाऊ दिके भक्तगण हरिध्वनी कोरे,
एसे उपनीत होलो जाह्नबीर तीरे।
अर्थात पौष संक्रांति दिन में चैतन्य महाप्रभु अपने भक्तजनो के साथ गंगा स्नान हेतु हरिनाम करते हुए माँ गंगा के पास पहुचे। मकर कीर्तन करने के पीछे यही मान्यता है। नुआग्राम के कीर्तन मंडली मकर कीर्तन करते हुए पूरा गांव परिक्रमा किया।अंत मे शिव मंदिर में प्रदक्खिन करते हुए लक्खी मंदिर ने कीर्तन का समापन किया।कीर्तन के पश्चात मकर चावल और तिल लड्ड़ू प्रसाद के रूप में वितरण किया गया।कीर्तन मंडली में सुनील कुमार दे के अलावे शंकर चंद्र गोप,भास्कर चंद्र दे,स्वपन दे,तरुण दे,तपन दे,महादेव दे,प्रशांत दे,शैलेन्द्र प्रामाणिक,प्रदीप दे,अरुण पाल आदि सहयोग दिया।ऐसी तरह की परंपरा झारखंड के बहुत गांव में आज भी जीवित है।