जमशेदपुर। भुइयाडीह स्लैग रोड़ स्थित नीतिबाग कॉलोनी में चल रहे भागवत कथा के दूसरे दिन शुक्रवार को वृदांवन से पधारे श्रीहरि जी महाराज ने व्यासपीठ से परीक्षित जन्म, सुखदेव आगमन की कथा सुनाई। जिसे सुनकर श्रोता भाव विभोर हो उठे। उन्होंने कहा कि कथा सुनने से धन नहीं आनन्द मिलता हैं। धन से आत्मिक सुख नहीं मिलता। वह सुख कथा सुनने से ही मिलता हैं। उन्होंने बताया कि, धन तो कोई भी कमा लेता है मगर धन से सुख, नींद, चौन, संतोष आदि नहीं खरीदा जा सकता है। महाराज ने भागवत महात्म्य पर विस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि युद्ध में गुरु द्रोण के मारे जाने से क्रोधित होकर उनके पुत्र अश्वत्थामा ने क्रोधित होकर पांडवों को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया। ब्रह्मास्त्र लगने से अभिमन्यु की गर्भवती पत्नी उत्तरा के गर्भ से परीक्षित का जन्म हुआ। परीक्षित जब बड़े हुए नाती पोतों से भरा पूरा परिवार था। सुख वैभव से समृद्ध राज्य था। वह जब 60 वर्ष के थे। एक दिन वह क्रमिक मुनि से मिलने उनके आश्रम गए। उन्होंने आवाज लगाई, लेकिन तप में लीन होने के कारण मुनि ने कोई उत्तर नहीं दिया। राजा परीक्षित स्वयं का अपमान मानकर निकट मृत पड़े सर्प को क्रमिक मुनि के गले में डाल कर चले गए। अपने पिता के गले में मृत सर्प को देख मुनि के पुत्र ने श्राप दे दिया कि जिस किसी ने भी मेरे पिता के गले में मृत सर्प डाला है। उसकी मृत्यु सात दिनों के अंदर सांप के डसने से हो जाएगी। ऐसा ज्ञात होने पर राजा परीक्षित ने विद्वानों को अपने दरबार में बुलाया और उनसे राय मांगी। उस समय विद्वानों ने उन्हें सुखदेव का नाम सुझाया और इस प्रकार सुखदेव का आगमन हुआ। आज की कथा विश्राम के बाद मुख्य यजमान यशवंत सिंह नेे व्यासपीठ की आरती उतारी। इस मौके पर श्री हरि गोबिन्द सेवा समिति की सुनीता सरोज, हंसा सरोज, सीमा सरोज, नंदजी सिंह, रामेश्वर सिंह, विकास कुमार, डा. एसके तिवारी, श्रीराम सरोज, रविशंकर सिंह, दिलीप सिंह, महेश कुमार समेत बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।