जमशेदपुर। बिष्टुपुर सत्यनारायण मारवाड़ी मंदिर में चल रहे भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के छठवें दिन रविवार को व्यासपीठ से कथा वाचक हिमांशु महाराज ने गोपी गीत, उद्धव गोपी संवाद, कंश वध, कृष्णा-रूकमणी विवाह प्रसंग की भावपूर्ण ढंग से व्याख्या की। महाराज ने कथा सुनाते हुए कहा कि जीवन मे कृष्ण भक्ति ही वह आधार है। जो हमें भवसागर से पार लगाती है। भगवत भक्ति श्रद्धा एवं विश्वास हृदय में रखकर प्राप्त की जा सकती है। मनुष्य का कल्याण परमात्मा की शरण प्राप्त किए बिना संभव नहीं हैं। महाराज ने कंस वध का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान श्री कृष्ण के पृथ्वी लोक में अवतरित होने के प्रमुख कारण थे, जिसमें एक कारण कंस वध भी था। भगवान श्री कृष्ण ने 11 वर्ष की उम्र में अपने मामा कंस का वध कर मथुरा नगरी को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिला दी। मथुरा की जनता व देवता प्रसन्न होकर कृष्ण और बलराम पर फूलों की वर्षा करने लगे, तब नाना उग्रसेन राजा बने और मथुरा की सभी प्रजावासी सुखी हो गए। उन्होंने सत्संग की अमृत वर्षा करते हुए कहा कि जब तक हमारा अहंकार नष्ट नहीं होगा तब तक हम सुखी नहीं हो सकते। उन्होंने बताया कि रुकमणी जिन्हें माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। वह विदर्भ साम्राज्य की पुत्री थी, जो विष्णु रूपी श्रीकृष्ण से विवाह करने को इच्छुक थी। लेकिन रुकमणी जी के पिता व भाई इससे सहमत नहीं थे। जिसके चलते उन्होंने रुकमणी के विवाह में जरासंध और शिशुपाल को भी विवाह के लिए आमंत्रित किया था। जैसे ही यह खबर रुकमणी को पता चली तो उन्होंने दूत के माध्यम से अपने दिल की बात श्रीकृष्ण तक पहुंचाई और काफी संघर्ष हुआ। युद्ध के बाद अंततः श्री कृष्ण रुकमणी से विवाह करने में सफल रहे। भावुक कर देने वाला उद्धव गोपी प्रसंग सुनकर अधिकाशं श्रद्धालु आँशुओ को रोक नही पायें। वही कृष्णा-रूकमणी विवाह की सजाई गई झांकी और गोपी गीत पर श्रद्धालु झूमते नजर आए। उन्होंने महारास और गोपी गीत का महात्म्य भी बताया। कथाओं को सुनकर सभी भक्त भाव विभोर हो गए। रविवार को राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता तथा विधायक सरयू राय भगवात कथा में शामिल होकर महाराज जी से आर्शीवाद लिया और झारखंड के विकास की प्रार्थना की। छठवें दिन रविवार को पूजा यजमान के रूप में महावीर नागेलिया, अशोक संघी, अरूण बांकरेवाल, हरी प्रसाद आगीवाल, शिव कुमार रमेश कुमार आगीवाल समेत प्रसाद के यजमान छितरमल धुत, अजय विजय बांकरेवाल, विश्वनाथ नरेड़ी, रतन लाल आगीवाल, बनवरी लाल सुरेश सरायवाला उपस्थित थे