जमशेदपुर।
आनंद मार्ग प्रचारक संघ के तीन दिवसीय प्रथम संभागीय सेमिनार के तीसरे दिन गदरा आनंद मार्ग जागृति में
5 फरवरी रविवार दोपहर में आचार्य मन्त्रचैतन्यानन्द अवधूत ने” शिव की शिक्षा” पर सार गर्भित प्रवचन दिया और ज़ोर देकर कहा कि आदिगुरु भगवान शिव की शिक्षा आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने बताया कि श्री श्री आनन्दमूर्ति ने शिव शिक्षा के 12 सूत्रों की व्याख्या की है जिनमें शिव पुराण, शिव संहिता और आगम निगम शास्त्र को समाहित कर दिया है। आचार्य ने बतलाया कि भगवान शिव का जन्म लगभग 7000 वर्ष पूर्व हुआ था। उन्होंने न केवल मनुष्य वरन् समस्त जीव जगत के कल्याण के लिए अपना सर्वस्व लुटा दिया और अपने अपने आगमन को सार्थक कर के इस धरती के कण कण को पवित्र कर गए। प्राचीन काल के शोषित, पीड़ित और अवहेलित जन समुदाय ने भगवान शिव को अपने परम् आश्रय के रूप में पाया था।
भगवान शिव ने कहा था “वर्तमानेषु वर्तेत” अर्थात धर्म के पथ पर चलने वाले को वर्तमान में जीना होगा। अतीत का गुणगान करने और भविष्य की काल्पनिक रूपरेखा में जीना निरर्थक है। शिव के अनुसार, मानव जीवन का उद्देश्य है,” आत्म मोक्षार्थम् जगत् हिताय च” अर्थात धर्म के पथ पर चलने वालों को जगत् के हित के लिए भी काम करना होगा। जो व्यवस्था जन साधारण को सम्मानजनक जीने के अधिकार से वंचित करती है, उस व्यवस्था का भी डट कर विरोध करना होगा। यदि कोई सोचे कि वह समाज और संसार के शोषित पीड़ित और अवहेलित लोगों के कष्ट को भूल कर हिमालय की गुफा में जाकर शीर्षासन करते हुए कई युगों तक साधना करेगा और परमात्मा गुफा के पत्थर के दरवाजे को अपने हाथ से खोल कर उसके सामने प्रकट हो जाएंगे और उसकी इच्छा की पूर्ति कर देंगे तो वैसा होना कदापि सम्भव नहीं है।
आचार्य ने बताया कि भगवान शिव इस धरती के पहले विवाहित पुरुष हैं। उनके आगमन से पहले मानव अर्धविकसित था। स्त्री-पुरुष में पारिवारिक जीवन पद्धति को मान कर चलने की व्यवस्था नहीं थी। सन्तान के लालन पालन का दायित्व कोई नहीं लेता था। शिव ने नियम बनाया कि पुरुष को परिवार के भरण पोषण का दायित्व लेना होगा, इसलिए उन्होंने विवाहित पुरुष को “भर्ता” कहा। उन्होंने विवाहित स्त्री को “कलत्र” घोषित किया जो कि उभयलिंग है। अर्थात पति के साथ वह स्त्री और स्त्रीलिंग वाचक रहेगी किंतु सन्तान और अन्य लोगों के साथ वह पुरुष की भांति महिमामय रहेगी। इसलिए आज भी विवाह के समय वर-वधु को शिव-पार्वती की तरह रहने की शपथ दिलाई जाती है।
शिव ने कहा था कि जो लोगों को ज्ञानवर्जित कर शोषण करना चाहते हैं। भोले भाले लोगों की आंखों में धार्मिक अन्धविश्वास की धूल झोंक कर उन्हें अन्धा करना चाहते हैं, धार्मिक साधक को जनसाधारण को उनके मायाजाल से बचाना होगा। जो लोग तथाकथित धार्मिक ग्रंथों के उद्धरण देकर लोगों की बुद्धि को भ्रष्ट करना चाहते हैं, शिव ने कठोर भाषा में उनकी निंदा की थी और उन्हें “लोकव्याहमोहकारक” कहा था। ऐसे लोगों का एक सूत्रीय काम है मनुष्य के जीवन में व्याधि पैदा करना। धार्मिक लोगों को ऐसे लोगों से दूर रहना होगा और दूसरों को भी उनके चंगुल से बचाना होगा।