Home » JAMSHEDPUR : परसुडीह के लोको कॉलोनी में 30 अप्रैल से शुरू होगी मां पहाड़ी पूजा, 1954 में हुई थी शुरूआत, 1985 में लोको रेक्रिएशन क्लब ने अपने हाथों में लिया बागडोर
JAMSHEDPUR : परसुडीह के लोको कॉलोनी में 30 अप्रैल से शुरू होगी मां पहाड़ी पूजा, 1954 में हुई थी शुरूआत, 1985 में लोको रेक्रिएशन क्लब ने अपने हाथों में लिया बागडोर
कॉलोनी में निवास करने वाले पुराने बुजुर्गों का कहना है कि पहाड़ी पूजा की शुरूआत 1954 में नीलम्मा नामक बुजुर्ग महिला ने की थी. तब लोको कॉलोनी मैदान में यह आयोजन नहीं होता था बल्कि लोको रेलवे यार्ड में इसका भव्य आयोजन होता था. तब रेलवे यार्ड भी नहीं हुआ करता था. रेल अधिकारियों की ओर से रेलवे याई को विकसित कर दिए जाने कारण मां पहाड़ी पूजा का आयोजन लोको कॉलोनी मैदान में किया जाने लगा. इधर 1985 से पूजा को लोको रिक्रिएशन क्लब के तत्वावधान में किया जा रहा है. मां पहाड़ी पूजा को लेकर कई किवदंतियां भी है.
जमशेदपुर :परसुडीह के लोको कॉलोनी में होने वाले पहाड़ी पूजा का नाम जेहन में आते ही मन मयूर सा नाच उठता है. इस बार 30 अप्रैल से ही मां पहाड़ी पूजा का आयोजन किया जाएगा. 7 दिनों तक चलने वाली पूजा का समापन 6 मई को होगा. इसको लेकर 23 फरवरी को आमसभा का आयोजन भी किया गया था. इसके बाद से ही सभी तरह की तैयारियां कमेटी के लोग जोरों से कर रहे हैं.
प्रत्येक साल की तरह इस साल भी समापन समारोह पर झांकी और आतिशबाजियां लोगों को अपनी तरफ खींचने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा. इस बार नई कमेटी का गठन नहीं किया गया है बल्कि पुरानी कमेटी (लोको रिक्रिएशन क्लब) की ओर से बेहतर कार्य किए जाने के कारण उन्हें ही फिर से मौका दिया गया है.
पहाड़ी पूजा के नाम से ही चर्चित है लोको कॉलोनी
लोको कॉलोनी का नाम जुड़ने के पहले पहाड़ी पूजा का ही नाम सामने आता है. यहां पर जो कॉलोनी बनाई गई है वह चारों तरफ से रेलवे लाइन से घिरा हुआ है. बिना रेलवे लाइन पार किए स्टेशन रोड पर या सालगाझड़ी जाने का और कोई दूसरा रास्ता नहीं है. शहर के अधिकांश परिवार के लोग मां पहाड़ी पूजा पर माता के दर्शन करने जरूर आते हैं. समापन समारोह के दिन तो वे पहुंचना नहीं भुलते हैं.
जानिए कैसे होती है पूजा
पूजा के पहले दिन लोको कॉलोनी से भक्तों की टोली मां पहाड़ी को लाने के लिए गोलपहाड़ी मंदिर जाते हैं. वहां से माता को लाकर पूजा मंडप में स्थापित करते हैं. इसके बाद पांच दिनों तक प्रतिदिन शाम को मां पहाड़ी अपने सात बहनों के साथ नगर भ्रमण पर निकलती हैं. इस बीच रास्ते में जगह-जगह पर माता का चरण नीम पत्ता और जल से पखारा जाता है. माता लोगों को आर्शिवाद भी देती हैं. दुधमुंहे बच्चे को भी माता के चरणों में रखने की यहां पर परंपरा है. सातवें और अंतिम दिन मां पहाड़ी को धूमधाम से विदाई दी जाती है. विदाई के लिए झांकी और आतिशबाजी की भी व्यवस्था की जाती है.