जमशेदपुर :
‘संसार में मनुष्य के रूप में जन्म लेना दुर्लभ है और मनुष्य जन्म लेकर कवि होना और भी दुर्लभ है। शास्त्रों में कहा गया है कि जो साहित्य, कला और संगीत को प्यार नहीं करता, वह सींग और पूंछविहीन पशु के समान होता है। कविता का करुणा से गहरा संबंध है। आदि कवि वाल्मीकि ने क्रौंच-वध से आहत होकर फूट-फूटकर रोये और उनके मुंह से कविता पंक्ति निकल गयी। कविता की शुरुआत करुण रस से हुई। वाल्मीकि के रामायण से ही प्रेरित होकर तुलसीदास ने रामचरित मानस लिखा और दक्षिण भारत में कई रामायण लिखे गये।’’ आज एल.बी.एस.एम. कॉलेज के सभागार में साहित्य अकादेमी और एल.बी.एस.एम कॉलेज, जमशेदपुर द्वारा आयोजित पूर्वी क्षेत्रीय कविता उत्सव का उद्घाटन करते हुए कोल्हान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गंगाधर पंडा ने ये विचार व्यक्त किये। उन्होंने इस अवसर पर भगवान जगन्नाथ पर संस्कृत की एक ‘अष्टपदी’ भी सुनायी।
कविता उत्सव के विशिष्ट अतिथि कोल्हान विश्वविद्यालय के कुलसचिव जयंत शेखर ने भक्ति कविता की क्षमताओं की चर्चा करते हुए कहा कि आजादी के 75 साल बाद झारखंड में साहित्य अकादेमी का आयोजन होना अपने आप में अत्यंत महत्वपूर्ण है। आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत इस आयोजन का होना भी काफी अर्थपूर्ण है।
इसके पूर्व साहित्य अकादेमी के क्षेत्रीय सचिव देवेंद्र कुमार ‘देवेश’ ने स्वागत वक्तव्य में कहा कि किसी भी रचनाकार का सबसे बड़ा सम्मान यही है कि उसकी अभिव्यक्ति को सुना जाए। इस आयोजन का उद्देश्य साहित्य को नई पीढी तक ले जाना है। इसमें 18 भाषाओं के कवि भाग ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि भूमंडलीकरण के बाद हमारा समाज ज्यादा अर्थकेंद्रित हुआ है, लेकिन कोरोना काल में हमें समझ में आ गया है कि पैसा रहते हुए भी सबकुछ नहीं मिल जाता। मानवीय संवेदना के विकास के लिए साहित्य का प्रसार जरूरी है। कविता साहित्य की सबसे संवेदनशील विधा है। विभिन्न भाषाओं की कविता के बीच आपसी मेलजोल और सम्मान दरअसल सबको जोडने और सबके सम्मान के उद्देश्य से प्रेरित है।
आरंभिक वक्तव्य में साहित्य अकादेमी, पूर्वी क्षेत्रीय मंडल के संयोजक और एलबीएसएम कॉलेज के प्राचार्य प्रो. अशोक अविचल ने कहा कि कविता नाद ब्रह्म की उपासना है और जो उसकी उपासना करता है वह मानवता के प्रति समर्पित होता है। इस आयोजन में पढ़ी गयी कविताएं हमारी राष्ट्रीय दशा और दिशा को अनुभव कराएंगी।
उद्घाटन सत्र में विभिन्न भाषाओं के आमंत्रित कवियों, उद्घाटनकर्ता और विशिष्ट अतिथि के अतिरिक्त जमशेदपुर के प्रख्यात कथाकार जयनंदन को भी सम्मानित किया गया। हाल में ही जयनंदन को इफको-श्रीलाल शुक्ल सम्मान देने की घोषणा हुई है। उद्घाटन सत्र का संचालन प्रो. विनय कुमार गुप्ता और डॉ. संचिता भुईसेन तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मौसूमी पॉल ने किया।
दूसरा सत्र: माटी, किसान, पर्यावरण, स्त्री-प्रश्न से संबंधित कविताओं से रूबरू हुए श्रोता
दूसरे सत्र में संताली के साहित्यकार मदन मोहन सोरेन की अध्यक्षता में असमिया के उत्तम कुमार बरदलै, बांग्ला के कमल चक्रवर्ती, बोड़ो की रश्मि चौधुरी, अंग्रेजी की बसुधारा राय, मैथिली के शिव कुमार टिल्लू, मणिपुरी के एम.ए. हाशिम, नेपाली के राजा पुनियानी, ओडिआ के सौभाग्यवंत राणा, हो के डोबरो बुडीउली ने अपनी कविताओं का पाठ किया। उत्तम कुमार बरदैले महाजागतिक, मन, मस्तिष्क और हृदय तथा राख और मांस शीर्षक कविताओं का पाठ किया। ‘राख और मांस’ में उन्होंने कहा-
हर कोई स्वर्ग की बात करता है
लेकिन कोई भी मिट्टी की बात नहीं करता
कमल चक्रवर्ती पर्यावरण को लेकर बेहद बेचैन दिखे। रश्मि चौधुरी की कविताओं में स्त्री के अस्तित्व और उसकी स्वतंत्रता का सवाल मुखर था। वसुंधरा राय ने भी ‘एडवाइस टू दूर्गा’ और ‘रूल्स ए रेप रिपब्लिक’ जैसी कविताओं में वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिवेश में स्त्री विरोधी प्रवृत्तियों का विरोध किया। शिवकुमार टिल्लू ने ‘विहान गीत’ के जरिये यह संदेश दिया कि किसान थके हैं, हारे हैं फिर भी कहीं बैठे नहीं हैं। एस.ए. हाशिम ने ‘रेत पर तेरा चेहरा’शीर्षक कविता का पाठ किया। राजा पुनियानी ने अपनी गहरे अर्थबोध वाली बाल कविताओं को बडे ही नाटकीय अंदाज में सुनाया, जिसका छात्रों ने बहुत आनंद उठाया।
भाषा अलग हो सकती है, पर वेदना और कविता अलग नहीं होती : मित्रेश्वर अग्निमित्र
जब न्याय और क्रांति की जरूरत हो तो कविता की जरूरत होगी : मित्रेश्वर अग्निमित्र
कविता उत्सव के तीसरे सत्र के अध्यक्ष प्रो. मित्रेश्वर अग्निमित्र ने कहा कि इस आयोजन के जरिये झारखंड में सांस्कृतिक इतिहास का एक पन्ना लिखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि वेदना ज्ञान और कविता के लिए जरूरी है। जो कवि नहीं हैं, कविता उनके भीतर भी होती है, उनके भीतर जो अनुभूतियां और भाव हैं, उनको मेहनत करके व्यक्त करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भाषा अलग-अलग हो सकती है, पर कविता अलग नहीं होती, वेदना अलग नहीं होती। न्याय और क्रांति बिना कविता के नहीं होती।
इस सत्र में संध्या सिन्हा ने कांठी तथा भगजोगनी के खिड़की शीर्षक कविताओं का पाठ किया। उनकी कविताएं स्त्री-प्रश्न से संबंधित थे। सुभाषचंद्र महतो ने कुरमाली भाषा की अपनी कविताओं को सुनाया। कुड़ुख भाषा की कवयित्री गीता कोया ‘सिनगी देई’ और ‘तेंगा बा तेंगा’ के माध्यम से आदिवासियों के गौरवगाथा कही और उस इतिहास के लिए कविता में जगह की अपेक्षा की।
प्रो. लक्ष्मणचंद ने ‘इहे सांच हे’ और ‘बेटी के विदागरी गीत’को गाकर पूरे माहौल को बेहद भावपूर्ण बना दिया- उठल डेग के जब डगर रोक ले/ तोप-तलवार के नजर रोक ले/ मत मान पर इहे सांच हे-/ याद जेकर जी जहर घोल दे।
बोध मुुंडा की मुंडारी भाषा की रचनाओं में आदिवासी जनजीवन के सौंदर्य और श्रमिक जीवन की कठिनाइयों को व्यक्त किया।
भुजंग टुडु ने अपनी संताली कविताओं में मानव सभ्यता और इतिहास की शाश्वत चिंताओं और प्रश्नों के प्रति श्रोताओं को संवेदित किया। उर्दू के शायर प्रो. अहमद बद्र ने गजलें कहीं, जिनको काफी तारीफ मिली। उन्होंने एक गजल में कहा-
छूने वाले के हाथ जलते हैं, चाहे अपनी हो या परायी आग
फूल ने चांदनी ने बारिश ने, किसने किसने नहीं लगायी आग
दूसरी गजल में उन्होंने कहा- खिडकी वालों के कमरों में सूरज ने पहुंचायी धूप/ मेरे साये को पहुंचाने, दरवाजे तक आयी धूप।
तीसरे संत्र का संचालन प्रो. विजय प्रकाश ने किया। अंत में देवेंद्र कुमार देवेश ने कहा कि झारखंड भाषा साहित्य की दृष्टि से बहुत ही विविधतापूर्ण और समृद्ध जगह है। यहां हर साल कम से कम एक बार ऐसा आयोजन होना चाहिए।
इस मौके पर कुसुम ठाकुर, विमल झा, एचपी शुक्ला, डॉ. अमर सिंह, एलसी दास, गणेश ठाकुर समेत शहर के कई साहित्यकार, बुद्धिजीवी तथा एलबीएसएम कॉलेज और दूसरे कॉलेजों के प्रोफेसर तथा बड़ी संख्या में विद्यार्थी मौजूद थे।