जमशेदपुर : अधिवक्ता कुलविंदर सिंह ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं समाजवादी चिंतक स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न देने का फैसला विशुद्ध रूप से राजनीतिक है, जो विचारधारा धर्म के इर्द-गिर्द ही रहती है और उसी को आधार बनाकर पूरे देश में विपक्ष की आवाज को बंद करने में लगी हुई है. ऐसे में विपक्षी गोलबंदी के प्रणेता और चिंतक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का फैसला समझ से परे है. इस संबंध में जारी एक बयान में अधिवक्ता कुलविंदर सिंह ने कहा कि राम मंदिर निर्माण होने के बाद भारतीय जनता पार्टी एवं उसकी अनुषंगी इकाईयों तथा मातृ संगठन को यह समझ में आ गया है कि बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति में पिछड़ा और अति पिछड़ा वोटो का महत्व है और इसे साधे बिना बहुमत का आंकड़ा पाना मुश्किल है. इस अधिवक्ता के अनुसार बिहार में पिछड़ा और अति पिछड़ा की तकरीबन 60% आबादी है और जनता दल यू और राष्ट्रीय जनता दल गठजोड़ से पार पाना मुश्किल है. (नीचे भी पढ़ें)
उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी हमेशा ही वोटरों को लुभाने के लिए दूसरे दलों के आदर्श को बड़े ही चालाकी से अपना साबित करने की कोशिश करती रही है. कांग्रेस के पटेल, फारवर्ड ब्लॉक के सुभाष चंद्र बोस, आरपीआई के अंबेडकर को सैद्धांतिक रूप से अपने निकट बता रही है, वही कोशिश अब कर्पूरी ठाकुर को लेकर होगी. पिछड़े मतों को साधने के लिए ही मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नेतृत्व इस वर्ग के लोगों के हाथ में दिया गया है. राजस्थान उपचुनाव में भाजपा की बुरी हार ने बता दिया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अजेय नहीं हैं. बस संयुक्त रणनीति बनाने की जरूरत है. यदि भारतीय जनता पार्टी सही मायने में पिछड़ों का कल्याण चाहती है तो उसे राजनीति के साथ-साथ सांगठनिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूप से भी आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी देनी चाहिए. ऐसा होना निकट भविष्य में असंभव है.