जमशेदपुर।
पूर्वी सिंहभूम जिला से फाइलेरिया उन्मूलन को लेकर जिला प्रशासन प्रतिबद्ध है तथा इसको लेकर विभिन्न स्तर पर प्रयास किया जा रहा है। पिछले दिनों पोटका प्रखंड के भ्रमण पर आई राज्य स्तर की ‘ज्वाइंट मॉनिटरिंग मिशन’ टीम की फीडबैक पर चर्चा एवं जरूरी उपाय किए जाने को लेकर समाहरणालय सभागार, जमशेदपुर में उपायुक्त विजया जाधव की अध्यक्षता में एक बैठक आयोजित हुई। बैठक में जिला परिषद अध्यक्ष बारी मुर्मू, उपाध्यक्ष पंकज सिन्हा, सिविल सर्जन डॉ. साहिर पाल, जिला पंचायती राज पदाधिकारी डॉ रजनीकांत मिश्रा, जिला समाज कल्याण पदाधिकारी श्रीमती सत्या ठाकुर, जिला जनसंपर्क पदाधिकारी रोहित कुमार, बीडीओ डुमरिया साधु चरण देवगम, बीडीओ धालभूमगढ़ सविता टोपनो, बीडीओ गुड़ाबांदा स्मिता नगेसिया, बीडीओ पटमदा चंचला कुमारी, सभी एमओआईसी, सीडीपीओ तथा अन्य पदाधिकारी उपस्थित रहे। जिले में वर्तमान में फाइलेरिया के 1790 मरीज तथा हाइड्रोसिल के 1754 मरीज हैं। पिछले 3 वर्षों के रिकॉर्ड को देखें तो वर्ष 2020 में फाइलेरिया के 134, 2021 में 396 तथा 2022 में 154 मरीज चिन्हित किए गए हैं । बैठक में फाइलेरिया मरीजों के बीच 01 दिसंबर से एम.एम.डी.पी किट के वितरण का निर्णय लिया गया। वहीं पोटका प्रखंड में 03 दिसंबर से नाईट सर्वे शुरू होगा जिसमें स्थानीय लोगों से सहयोग की अपील की गई।
सामुदायिक सहभागिता एवं लोगों के बीच बीमारी को लेकर जागरूकता फाइलेरिया उन्मूलन में काफी अहम फाइलेरिया रोग की गंभीरता को जन-समुदाय के बीच रखने तथा सामुदायिक सहभागिता से इस बीमारी के समूल उन्मूलन पर बल देते हुए जिला दण्डाधिकारी-सह-उपायुक्त ने कहा कि लोगों को इस गंभीर बीमारी के बारे में जरूरी जानकारी देने तथा इसके प्रभाव में आने से बचने के लिए पंचायत स्तर पर उन्मुखीकरण किया जाए। इसके लिए उन्होने पंचायत प्रतिनिधियों की अहम भूमिका होने की भी बात कही। उन्होने कहा कि बीमारी से ज्यादा प्रभाव इसके प्रति अज्ञानता से होती है । बीमारी लाइलाज जरूर है लेकिन ऐसा नहीं है कि इससे बचा नहीं जा सकता है । उन्होने कहा कि सामाज के तौर पर भी जागरूक पहल करने की जरूरत है ताकि लोग आगे आएं और इस विषय पर गंभीर चर्चा करें। सामाजिक दृष्टिकोण से देखें तो लोग इसे छूआछूत की बीमारी मानते हैं लेकिन यह सिर्फ एक संक्रामक रोग है।
सिविल सर्जन डॉ साहिर पाल ने बताया कि फाइलेरिया रोग 7 स्टेज में पहुंचने पर बिल्कुल लाइलाज हो जाता है । पहले या दूसरे स्टेज में ही संभावित रोगी को चिन्हित कर उसका ससमय इलाज शुरू कर दिया जाए तो उस मरीज में इसके आगे के प्रसार को रोका जा सकता है । उन्होने बताया कि फाइलेरिया मच्छर के काटने से फैलता है और यह ठहरे हुए गंदे पानी में ही पनपता है, इसलिए जरूरी है कि अपने आसपास जलभराव न होने दें। जब यह मच्छर किसी फाइलेरिया से ग्रस्त व्यक्ति को काटता है तो वह संक्रमित हो जाता है जिससे इसके प्रसार की संभावना कई गुना बढ़ जाती है ।
फाइलेरिया के लक्षण में बुखार, बदन में खुजली और पुरुषों के जननांग और उसके आस-पास दर्द व सूजन की समस्या होती है। इसके अलावा पैरों और हाथों में सूजन, हाइड्रोसिल (अंडकोषों की सूजन) भी फाइलेरिया के लक्षण हैं। चूंकि इस बीमारी में हाथ और पैरों में हाथी के पांव जैसी सूजन आ जाती है, इसलिए इस बीमारी को हाथीपांव भी कहा जाता है। फाइलेरिया का लक्षण दिखते ही तुरंत जांच कराकर चिकित्सा परामर्श लेना जरूरी है।
फाइलेरिया रोग का कोई पर्याप्त इलाज संभव नहीं है। लेकिन, इसे शुरुआत में ही पहचान करते हुए रोका जा सकता है। इसके लिए संक्रमित व्यक्ति को फाइलेरिया ग्रसित अंगों को पूरी तरह स्वच्छ पानी से साफ करना चाहिए। साथ ही सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही डीईसी व अल्बेंडाजोल की दवा का नियमित सेवन करना चाहिए।