जमशेदपुर : हर बच्चे की माता-पिता यह सपना लिए होते हैं कि उनकी संतान पढ़-लिखकर कम-से-कम उनसे तो अच्छा आदमी बने. अपनी खुद की रोजी कमाए और उनका नाम रोशन करे. बावजूद कुछ ऐसे बच्चे भी शहर में हैं जिनके माता-पिता नहीं हैं. अगर माता-पिता हैं भी तो उनकी हालत ऐसी है कि उनके बच्चे पढ़ाई-लिखाई नहीं कर पाते. ऐसे में उनके बच्चे मजबूरन कचरे के ढेर से ही अपनी क्षुधा शांत करने की कोशिश करते हैं. इस तरह के बच्चों को शहर के कोने-कोने में देखा जा सकता है. रेलवे स्टेशन हो या स्टेशन के बाहर. इनकी तरफ न तो सरकार का ध्यान गया है और न ही खुद को समाजसेवी बताने वाले नेता ही इनकी सुध लेते हैं. काम करे या न करे अखबार के पन्नों में नाम के आगे समाजसेवी जरूर लग जाता है. यह मसला नेताओं के साथ-साथ सरकार के मुंह पर भी करारा तमाचा से कम नहीं है.
जानिए कहां की है यह जीवंत तस्वीर
शनिवार की सुबह 11 बजे सुंदरनगर रैफ कैंप (106 बटालियन) के ठीक पीछे के हिस्से में शिवपुरी कॉलोनी बना हुआ है. इस कॉलोनी में अभी तक सड़क की सुविधा नहीं दी गई है. मिट्टी वाली सड़क से 4 नौनिहालों को सिर पर कचरे का ढेर उढाए हुए देखा गया. बोरे में बांधकर जो कचरा सिर पर रखा गया था उसमें प्लास्टिक की बोतलें व अन्य प्लास्टिक के सामान थे. बच्चों से पूछने पर पता चला कि वे पढ़ाई नहीं करते हैं. उनकी रोजी इसी कचरे की ढेर से चलती है. इसे वे टाल पर ले जाकर बेच देते हैं. उससे जो पैसा मिलता है उसी से पेट की क्षुधा शांत करने की कोशिश करते हैं.
कौन लेगा इनकी सुधि
आखिर इन नौनिहालों की सुधि कौन लेगा. यह एक बड़ा सवाल है. ऐसे बच्चों का कहीं पर भी ठौर-ठिकाना नहीं होता है. जहां रात हो गई वहीं पर वे खुले आसमान के नीचे रात गुजार देते हैं. वर्तमान में ठंड के मौसम में उनकी पीड़ा बढ़ गई है. बच्चों से पूछने पर बताया कि वे सड़क किनारे किसी बंद दुकान के सामने अपनी रात काट लेते हैं. यह कहानी सिर्फ सुंदरनगर के एक कस्बे की नहीं है बल्कि शहर के साथ-साथ झारखंड के कोने-कोने की है. नौनिहालों की कष्टदायी पीड़ा को कम करने और उन्हें शिक्षा की डोर में बांधने की जिम्मेवारी समाज के सक्षम लोगों के साथ-साथ सरकार की भी है. इस दिशा में पहल कर नौनिहालों की दीनचर्या को बदल सकते हैं.