जमशेदपुर : प्राउटिष्ट यूनिवर्सल की ओर से आनंद मार्ग जागृति गदरा में आयोजित पांच दिवसीय उपयोगिता प्रशिक्षण शिविर (यूटीसी) के दूसरे दिन शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक उत्थान के लिए कीर्तन, आसन आध्यात्मिक साधना के बाद मुख्य प्रशिक्षक आचार्य प्रियतोषानंद अवधूत ने बताया कि उपयुक्त आर्थिक नीति एवं दूरदर्शी नैतिक नेतृत्व का आभाव ही समाज में विषमता का एकमात्र कारण है. पूंजीवाद ने मनुष्य का आर्थिक शोषण कर उसे भिखारी बना दिया है, तो साम्यवाद ने धर्म को अफीम बताकर मनुष्य को हैवान बना दिया है. विश्व मानवता उपयुक्त सही जीवन दर्शन के अभाव में घोर निराशा एवं हताशा की काली छाया के बीच चौराहे पर खड़े हैं. हाल ही में वाशिंगटन में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की सभा में उपस्थित दुनिया के वित्त मंत्री सेंट्रल बैंक के प्रमुख एवं संसार के जाने-माने अर्थशास्त्रियों ने एक स्वर में स्वीकार किया है कि तेज आर्थिक विकास का अब कोई मॉडल नहीं दिख रहा है. पूंजीवाद का मौजूदा मॉडल ग्लोबल इकोनॉमी या उदारीकरण की अर्थव्यवस्था पर अब बंद गली के दरवाजे पर है और साम्यवाद की समाजवादी मॉडल तो काफी पहले ही अतीत का पाठ बन चुका है, तब विकल्प क्या है ऐसी विषम परिस्थिति में सदी के महान दार्शनिक एवं युगदृष्टा श्री श्री आनंदमूर्ति जी द्वारा प्रतिपादित एक सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक सिद्धांत प्रउत (प्रगतिशील उपयोगी तत्व) ने दिग्भ्रमित मानव मनीषा में एक आशा की किरण जगाई है. (नीचे भी पढ़ें)
अध्यात्म पर आधारित “प्र उत्त” दर्शन नव मानवतावाद की आधारशिला पर एक शोषण मुक्त मानव समाज के नव निर्माण का उद्घोषित करता है. “प्र उ त “चाहता है एक ऐसी समाज व्यवस्था, जिसमे पर्यावरण अनुकुल समस्त जीव जंतु की पतंग पेड़ पौधे पशु पक्षी नर-नारी बच्चे बूढ़े गरीब अमीर सभी को स्वतंत्र रुप से जीने का अधिकार हो, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की न्यूनतम आवश्यकता भोजन वस्त्र आवास शिक्षा एवं चिकित्सा की पूर्ति की गारंटी हो. इसमें शत प्रतिशत रोजगार के द्वारा उत्तरोत्तर प्रगति एवं जीवन स्तर में वृद्धि हो जिसमें गुणी जनों को न्यूनतम आवश्यकता के अतिरिक्त विशेष सुविधाएं प्रदान हो. इसमें सभी प्रकार के संपदाओं का अधिकतम उपयोग एवं विवेक पूर्ण वितरण, जिसमें सबको शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक विकास का समान शुअवसर हो, जिसमें सभी को सभी प्रकार की जीवन पर सुख की जीवन पर सुख सुविधा उपलब्ध हो. किसी को किसी भी परिस्थिति में किसी भी प्रकार से शोषित होने की कोई गुंजाइश ना हो वही है “प्र उत “की आर्थिक प्रजातंत्र की परिकल्पना.
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