पूर्वी सिंहभूम : हाता में झारखंड साहित्य संस्कृति परिषद की ओर से मांग की गई है कि मातृभाषा बांग्ला को संवैधानिक जीवनदान दी जाए. इसको लेकर बांग्ला भाषी शिक्षा मंत्री को एक मांगपत्र सौंपेंगे. दौरान बांग्ला भाषियों ने कहा कि दो दशक पहले झारखंड के लगभग सभी स्कूलों में बांग्ला भाषा में पढ़ाई लिखाई होती थी. आज हमारी मातृभाषा यथार्थ राज्य के द्वितीय राजभाषा बांग्ला पूर्णता अपेक्षित होते हुए मृत प्राय हो चुकी है. जबकि हमारे संविधान के अनुच्छेद 350 ए के तहत देश के हर नागरिकों को अपनी मातृभाषा में कम से कम प्राथमिक तक की शिक्षा प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है.
भड़के हुए हैं समाज के लोग
झारखंड के मुख्यमंत्री, महामहिम राज्यपाल को इससे पहले भी पत्र के माध्यम से अवगत कराया गया था. बांग्ला भाषा में पुस्तक की छपाई और शिक्षकों की बहाली की मांग की गई थी. पुनः प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक पठन-पाठन करने की व्यवस्था करने की मांग की गई थी. प्रेस कांफ्रेंस में शंकर चंद्र गोप, सुनील कुमार दे, तपन मंडल, जिला परिषद सूरज मंडल आदि ने कहा कि झारखंड में पूरी तरह से बांग्ला भाषा को खत्म कर दिया गया. इतने मनोरम भाषा को साजिश के तहत खत्म कर दिया गया है. सरकार से बार-बार आवेदन कर चुके हैं. बांग्ला राष्ट्रीय भाषा है. विश्व की सबसे सरल और मधुर भाषा के रूप में जाना जाता है. विश्व में बांग्ला भाषा का देश में दूसरा और राज्य में पहला स्थान है.
42 फीसदी लोग बोलते हैं बांग्ला
राज्य में 42% लोग बांग्ला भाषा बोलते हैं. इसके बाद भी ना तो बांग्ला भाषा में पुस्तक की छपाई हुई और ना ही शिक्षक की बहाली हुई. आज क्षेत्रीय बांग्ला, उर्दू और ओडिया भाषा की की स्थिति खराब है. मौके पर मृणाल पाल, बलराम गोप, तपन कुमार मंडल, स्वपन मंडल, तपन दे, सुधांशु कुन्नूर, पंकज मंडल आदि उपस्थित थे.