पटमदा :सबर जाति के लोगों को हर तरह की सुविधाएं मुहैया कराने का आदेश केंद्र सरकार की ओर से ही दिया गया है लेकिन वे सुविधाओं से वंचित हैं. देश के आजाद हुए आज 77 साल से भी ज्यादा हो गए हैं. बावजूद उनकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है. डीसी से लेकर प्रखंड विकास पदाधिकारी तक चुप्पी साधे रहते हैं. हम बात कर रहे हैं पटमदा के ढोलकोचा गांव की.
पटमदा ढोलकोचा के आदिम जनजाति समुदाय (सबर जाति) के करीब 30 परिवारों के समक्ष पेयजल संकट एक बड़ी समस्या बनी हुई है. भीषण गर्मी में उन्हें जूझना पड़ रहा है. यह परिवार पूर्वी सिंहभूम जिले के पटमदा प्रखंड की खेरुआ पंचायत अंतर्गत धूसरा टोला ढोलकोचा में है.
गांव तक नहीं पहुंची है सड़क
यहां के सबर आग भी आदिम युग की तरह ही जीने को विवश हैं. प्रखंड मुख्यालय से करीब 5 किमी. और टाटा-पटमदा मुख्य सड़क से डेढ़ किमी. दूर इस टोला तक पहुंचने के लिए आज तक सड़क का निर्माण नहीं हुआ है. पेयजल की व्यवस्था के नाम पर एक कुआं है. फिलहाल सूखी पड़ी है.
चापाकल है मृतप्राय
यहां एक चापाकल है जो मृतप्राय है. यहां के लोगों को दूर से पीने का पानी लाना पड़ता है. सरकारी योजना के नाम पर अबतक सिर्फ एक परिवार को आवास योजना का लाभ मिला है. बाकी आवास योजना की बाट जोह रहे हैं.
पीजीटीवी पेंशन योजना का मिल रहा लाभ
लगभग सभी परिवार पीजीटीवी पेंशन योजना से आच्छादित किए गए हैं. पीडीएस से राशन भी मिल जाता है. शुद्ध पेयजल के अभाव में हर वर्ष इस टोले के लोग डायरिया का शिकार होते हैं. जेटीडीएस (कल्याण विभाग की संस्था) की ओर से आजीविका चलाने के लिए कुछ लोगों को बकरी व मुर्गियां दी गई हैं और कुछ लोगों को गल्ला दुकान या अन्य व्यवसाय के लिए 6750 रुपए की दर से पूंजी की व्यवस्था की गई है.
क्या कहते हैं सबर परिवार के लोग
ढोलकोचा निवासी सुकचांद सबर, मगंल सबर, रवि सबर, कविता सबर, पारूल सबर व अष्टमी सबर का कहना है कि स्वच्छ पेयजल के लिए सोलर आधारित जलापूर्ति योजना का लाभ मिलने से भीषण गर्मी में थोड़ी राहत मिल सकती है. हालांकि बाकी दिनों में भी यहां का पानी स्वच्छ नहीं होने से लोग अक्सर बीमार पड़ते रहते हैं.