पूर्वी सिंहभूम :रसूनचोपा पंचायत के सारसे और बुरूहातु के रहने वाले दुसा-युगल दोनों भाइयों ने 1830-1832 में अंग्रेजों द्वारा जबरदस्ती आदिवासियों को नील की खेती और कर ( लगान) की मांग की गई थी. इसके विरोध में अंग्रेजों के विरोध में चुहाड़ विद्रोह आदिवासियों द्वारा की जा रही थी. इस दौरान दुसा-युगल दोनों भाई चुहाड़ विद्रोह के महानायक के रूप में जाने जाते थे. बड़े-बड़े पत्थरों को खेतों में लगाकर सड़क किनारे से गुजरने वाले अंग्रेजों पर तीर चलाया करते थे और नील की खेती का पूरजोर विरोध करते.
अंग्रेजों के नाक में दम कर रखे हुए थे. अंग्रेजों द्वारा पकड़ने के लिए कई बार इन दोनों भाइयों को छापामारी की गई मगर दोनों भाइयों को पकड़ने में नाकाम रहे. आंदोलन लगातार चलता रहा. अंतत धोखे से इन दोनों भाइयों को अंग्रेजों ने पकड़ लिया. इसके बाद इन्हें बैलगाड़ी में जोतकर ग्रामीणों को बैठक बैलगाड़ी में दोनों भाइयों को देवली चौक लाया गया. यहां पर दोनों भाइयों को अंग्रेजों की ओर से फांसी दी गई. इस घटना से पूरा क्षेत्र दहल उठा था. वहीं गांव के ग्रामीण आज भी इन दोनों भाइयों की याद में उनके द्वारा स्थापित पत्थरों की पूजा प्रतिवर्ष करते हैं. साथ ही उनकी याद में रक्तदान शिविर का भी आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है.
23 फरवरी 1790 को हुआ था जन्म
हिमांशु सरदार ने कहा कि उनके बलिदान को आज भी सभी नमन करते हैं. उनकी याद में गांव के चौक पर दोनों भाइयों की मूर्ति स्थापित कर प्रति वर्ष 23 फरवरी को जयंती के रूप में मनाया जाता है. उनका जन्म 23 फरवरी 1790 को हुआ था. इनके द्वारा उपयोग में किए गए तीर, धनुष और तलवार आदि हथियारों को आज भी लोग संजोकर रखे हुए हैं.
वीरों की धरती है पोटका
पोटका को वीरों की धरती भी कहा जाता है.गांव के भुवनेश्वर सरदार ने कहा की इन दोनों के बलिदान को गांव के लोग आज भी नहीं भूल पाए हैं. आज भी हम सब उनकी याद में पत्थर की पूजा करते हैं. 23 फरवरी को पूरे गांव के लोग उनकी जयंती मनाएंगे.