पोटका : भले सरकार और जनप्रतिनिधि ढोल पीट रहे हो कि राज्य में विकास हो रहा है. कल्याणकारी योजनाओं से गरीब लाभान्वित हो रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. यदि सरकार का झूठ देखना हो तो पूर्वी सिंहभूम जिले के पोटका प्रखंड स्थित जुड़ी सामरयाई गांव चले आइये. जहां आपकी आंखें एक दिव्यांग बेहुला को देखकर खुली की खुली रह जाएंगी. जी हां, आप हैरान हो जाएंगे यह जानकर कि एकल दिव्यांग बेहुल का घर तो है, लेकिन सर छुपाने के लिए उसमें छत नहीं है. धूप, बरसात में तिरपाल में रहने को मजबूर है. ज्यादा बारिश होने से उसे अपने को बचाने के लिए शौचालय में भी रहना पड़ता है. बेहुल के रहन-सहन का तरीका देखकर आपकी आंख भी एक बार भर आएगी. बेहुल दिव्यांग है. उसे सरकारी योजना के नाम पर केवल पांच किलो चावल एक महीने में प्राप्त होते हैं. उसके अलावा कुछ भी नहीं. स्थानीय जनप्रतिनिधि या सरकारी अफसरों की नजर उस तक नहीं पड़ी. ऐसे में यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि सरकार कहां है !
सरकारी योजनाएं बेहुला के आगे तोड़ रही दम
दिव्यांग बेहुला के पास रहने को घर नहीं त्रिपाल के नीचे रहने को विवश है. तेज बारिश में शौचालय में रहकर जीवन का गुजर-बसर कर रही है. परिवार में एकल सदस्य होने से बेहुला को मदद करने वाला कोई नहीं है. पास पड़ोस की मदद से उसकी पेंशन स्वीकृत हुई. राशन कार्ड से मात्र 5 किलो चावल ही मिलता है, जिसके कारण पूरा महीना नहीं चला पाती है. बेहुला कहती है कि मैं दिव्यांग हूं, जिसके कारण में मजदूरी भी नहीं कर पाती हूं और मुझे राशन कार्ड में सिर्फ 5 किलो चावल मिलता है. रहने को घर नहीं है बहुत दिक्कत होता है. बारिश होने पर शौचालय में रहने के लिए विवश हूं. कई बार लिखित देने के बाद भी बेहुला को न तो अंबेडकर आवास ही मिला और न ही पीएम आवास. ऐसे गरीब लोगों का नाम पीएम आवास में भी नहीं है. पड़ोसी चंडी चरण सरदार कहते हैं कि ऐसे एकल परिवार को सिर्फ सरकारी कर्मचारी आश्वासन देते हैं. कई बार सर्वे किया गया, मगर इस दिव्यांग महिला का अब-तक आवास नहीं बन पाया, जिसके कारण तिरपाल के नीचे एवं बारिश में शौचालय में रहने को विवश हो रही है.