जमशेदपुर : ओड़िया और आदिवासी समुदाय के द्वारा चार दिवसीय रजो संक्रांति पर्व काफी धूम-धाम से मनाया जा रहा है । आज ही के दिन सूर्य को मिथुन राशि में प्रवेश करने के कारण कई जगहों पर इसे मिथुन संक्रांति के रूप में भी मनाया जाता है। इस पर्व की तिथि से ही आदिवासी समाज के लोग मकर पर्व की गिनती करते हैं। इस पर्व को कृषि पर्व भी कहा जाता है । जिसमे मानसून की पहली बारिश जो कृषि कार्य के लिय उत्तम माना जाता है। उसका स्वागत आदिवासी समाज के लोग पर्व मनाकर करते हैं। आज के दिन आदिवासी समुदाय के लोगों के द्वारा धरती माता को आराम करने दिए जाता है। जिसके चलते खेती कार्य में लगने वाले हल को धरती के सम्पर्क से दूर ऊपर उठाकर घरों में लटका दिया जाता है। मान्यता है की जिस तरह से महिलाएं रजो निवृति प्रक्रिया के बाद गर्भ धारण कर परिवार में सुख और उल्लास लाती है और वंश को बढ़ाती है उसी तरह धरती माता भी इन दिनों गर्भ धारण कर हमें अच्छी फसल देकर हमारे घर को अनाज से भर देती है। जिससे हमारा धनझ्रधान्य परिपूर्ण होता है। इस पर्व को लेकर पिछले दस दिनों से आदिवासी महिला-पुरुषों के द्वारा के तैयारी की जाती है। पर्व की तैयारी को लेकर जंगल से सुखी लकड़ी चुनकर लायी जाती है। साल के पत्ते तोड़कर लाये जाते हैं। जंगल और पहाड़ों से जड़ी-बूटी इक्कट्ठा करके इसका हड़िया पेय पदार्थ बनया जाता है,चावल को धोकर सुखाकर इसे मीलों में पिसाकर चावल की गुंडी तैयार की जाती है और अपने अपने क्षमता और जरुरत के अनुसार मांस- मछली का भी प्रबन्ध किया जाता है। चावल की गुंडी और मांस को मिलकर आदिवासी समाज के प्रमुख लजीज पकवान पीठा और लेटो तैयार किया जाता है। घर के सभी सदस्य एकसाथ मिल बैठकर खाते हैं। इस दिन इन लजीज पकवानों से अपने पूर्वजों को याद कर उन्हें भी अर्पित किया जाता है। घाटशिला के मुसाबनी प्रखंड के आदिवासी बहुल गाँव कुमिरमुड़ी में भी आदिवासी समुदायों के द्वारा इस पर्व को मनाया जा रहा है। आज दिन भर आराम के बाद कल से लोग अपने अपने खेतों में हल बैल लेकर उतरेंगे और इस उम्मीद के साथ कृषि कार्य में जुट जायेंगे की धरती माता इस बार भी हमें अच्छी पैदावार देगी और गांव घरों में खुशहाली आएगी।