सरायकेला : रंग और गुलाल का त्योहार होली का ख्याल आते ही हर मन हर्षित हो जाता है. सरायकेला क्षेत्र में होली का त्योहार ब्रज की होली जैसा आनंद देता है. जिसमें भगवान श्री कृष्ण स्वयं भक्तों के दरवाजे पर आते हैं और भक्तों के साथ होली खेलते हैं.
सदियों से चली आ रही यह अनूठी परंपरा को दोल उत्सव के नाम से जाना जाता है. पूरे जिले भर में होली की तैयारी को लेकर उत्साह का माहौल देखा जा रहा है. वहीं पूर्णिमा तिथि को सरायकेला की परंपरागत दोल उत्सव को लेकर तैयारी जारी है. आध्यात्मिक उत्थान श्री जगन्नाथ मंडली सरायकेला के तत्वावधान में आयोजित होने वाली दोल उत्सव की तैयारी की जा रही है. (नीचे भी पढ़ें)
सरायकेला एक स्वतंत्र स्टेट हुआ करती थी, सन 1818 में तत्कालीन प्रशासक उदित नारायण सिंह के समय से दोल उत्सव परंपरा का आयोजन होते आ रही है. राजघराने के संरक्षण में यह उत्सव काफी धूमधाम से मनाया जाता था परंतु स्टेट विलय के पश्चात के इस उत्सव पर ग्रहण लग गई. सभी पुरानी परंपराओं के साथ-साथ इस परंपरा ने भी अपनी दम तोड़ दिया था. वर्ष 1990 से श्री आध्यात्मिक उत्थान जगन्नाथ मंडली द्वारा पुनः दोल उत्सव को प्रारंभ कराया गया. आयोजक मंडली के संस्थापक ज्योतिलाल साहू ने बताया कि सनातनी महा एकता का प्रतीक बना पूर्ण कुंभ इस वर्ष सरायकेला की परंपरागत दोल यात्रा के दौरान झांकी के रूप में प्रमुख आकर्षण रहेगा. उक्त जानकारी देते हुए आयोजक प्रमुख ज्योति लाल साहू ने बताया कि आध्यात्मिक उत्थान श्री जगन्नाथ मंडली सरायकेला द्वारा किए जा रहे दोल यात्रा के अनवरत 36 वर्ष पूरे होने पर अन्य परंपरागत घोड़ा नाच एवं काठी नाच के साथ-साथ महासंगम पूर्ण कुंभ की झांकी भी प्रस्तुत की जाएगी.
राधा संग पालकी पर विराजमान श्री कृष्णा दरवाजे दरवाजे पहुंचेंगे और भक्तों के साथ होली खेलेंगे. यही यहां की दोल उत्सव परंपरा रही है. भक्त अपने दरवाजे पर स्वागत करते हुए उनका आशीष लेकर उनके साथ गुलाल की होली खेलते हैं. मान्यता रही है कि दोल यात्रा के दौरान भगवान श्री कृष्ण के रथ पर दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. ज्योति लाल साहू बताते हैं कि सरायकेला में सरायकेला स्टेट के महाराजा उदित नारायण सिंहदेव के समय 1818 से दोल उत्सव की परंपरा रही है. जिसका निर्वहन 1990 से आध्यात्मिक उत्थान श्री जगन्नाथ मंडली सरायकेला द्वारा किया जा रहा है.
दोल यात्रा का शुभारंभ सरायकेला के कंसारी टोला स्थित प्राचीन मृत्युंजय खास श्री राधा-कृष्ण मंदिर से होता है. जहां गाजे-बाजे के साथ भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी को सरायकेला राजमहल स्थित मंदिर से मृत्युंजय खास श्री राधा कृष्ण मंदिर लाया जाता है. वहां से माखन मलाई का भोग सेवन कराने के पश्चात दोल उत्सव का शुभारंभ करते हुए नृत्य संगीत के साथ हर्षोल्लास से नगर भ्रमण कराया जाता है. सरायकेला के ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि राजवाड़े के जमाने में मृत्युंजय दत्ता राज दरबार के शाही पनवाड़ी हुआ करते थे. जो राज परिवार एवं आगंतुक राजकीय मेहमानों के लिए शाही पान बनाया करते थे. उनके बनाए पानों की खासियत के कारण तत्कालीन सरायकेला राजा द्वारा उन्हें ‘खास’ की उपाधि दी गई थी. साथ ही उनके आराध्य रहे भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के लिए मंदिर बनवाया गया था. इस कारण आज भी उक्त मंदिर को मृत्युंजय खास श्री राधा- कृष्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है.