जमशेदपुर। मानगो एनएच 33 स्थित वसुन्धरा एस्टेट में चल रहे श्री पाशुपात्य व्रत शिवकथा महोत्सव ज्ञान यज्ञ का समापन रविवार को हवन, पूजन और भंडारा के साथ हुआ। सात दिनों तक चले शिवकथा महोत्सव ज्ञान यज्ञ में रोजाना काफी संख्या में श्रद्धालु जुटे। सातों दिन मुख्य यजमान किरण-उमा शंकर शर्मा सहित समस्त शर्मा परिवार थे। हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने भंडारा (पंसाद) ग्रहण किया।
सातवें दिन रविवार व्यास पीठ से कथा वाचक स्वामी वृजनंदन शास्त्री महाराज ने कहा कि भगवान शिव को बेलपत्र और रूद्राक्ष अत्यंत प्रिय हैं। बेल पत्र में अखंड लक्ष्मी का वास होता है अगर धन होगा तो धर्म की ध्वजा धर्म की अविरल धारा होगी। भगवान शिव को बेल पत्र चढ़ाने और रुद्राक्ष धारण करने से मनुष्य को कई लाभ मिलते हैं। रुद्राक्ष मानसिक तनाव से मुक्ति देता है। यह शरीर, मन और आत्मा के लाभ के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है। महाराज श्री ने बताया कि भगवान शिव की आराधना में बेल पत्र यानि बिल्व पत्रों को विशेष महत्व है। आस्था के साथ शिवलिंग पर सिर्फ बिल्व पत्र ही अर्पित किये जाएं तब भी भगवान भोले अपने भक्त की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। बिल्व पत्र के वृक्ष को श्री वृक्ष और शिवद्रुम भी कहते हैं। बेल पत्र के तीनो पत्ते त्रिनेत्रस्वरूप् भगवान शिव के तीनों नेत्रों को विशेष प्रिय हैं। आज की कथा का मुख्य प्रसंग रहा कि महादेव को बिल्वपत्र अर्पित करें, ताकि भगवान शंकर प्रसन्न हो और भक्तों के सभी कार्य सिद्ध हो।
इनका रहा योगदानः-सात दिवसीय शिवकथा महोत्सव को सफल बनाने में प्रमुख रूप से उमाशंकर शर्मा, कृपाशंकर शर्मा, रामाशंकर शर्मा, गिरजाशंकर शर्मा, कृष्णा शर्मा उर्फ काली शर्मा, संतोष शर्मा, विश्वनाथ शर्मा, रामानन्द शर्मा, रवीन्द्र कुमार, अनिल कुमार, चंदन कुमार समेत शर्मा परिवार के सभी सदस्यों का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
कई गणमान्य हुए शामिलः- समापन के दिन रविवार को विभिन्न राजनीतिक एंव सामाजिक संगठन के गणमान्य टाटा डीएलटी के निलेश, वरिष्ठ पत्रकार आनंद, सुरेश सोंथालिया, योगेश महलोत्रा, किशोर गोलछा, मनोज अग्रवाल पवन शर्मा, महेश सोन्थालिया, अनिल चौधरी, विश्वनाथ शर्मा, अरुण बांकरेवाल, रोहित अग्रवाल, अनिल मोदी, जमुना टुड्डू, हर्ष, हेमंत, सुरंजन राय, निर्मल सिंह, रवि सिंह, बी के चतुर्वादी, राजीव सिंह, सुजीत सिंह, राहुल, कमलेश दूबे, हनु, संदीप, मिथलेश, प्रिंस सिंह, सूर्यामान सिंह आदि ने शिव और बांके बिहारी के दरबार में हाजरी लगायी और कथा का आनन्द लिया। साथ ही स्वामी वृजनंदन शास्त्री से आर्शीवाद लिया और झारखंड के विकास की प्रार्थना की।