दिल्लीः अभूतपूर्व आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता के संकट से जूझ रहे श्रीलंका के हालात पर चर्चा और इस पड़ोसी देश की मदद की संभावनाएं तलाशने के लिए भारत सरकार आज मंगलवार को सर्वदलीय बैठक करने जा रही है. मानसून सत्र के दूसरे दिन आयोजित होने जा रही इस बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्री एस. जयशंकर करेंगे.
भारत सरकार की इस सर्वदलीय बैठक में सभी प्रमुख राजनीतिक दल के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे. विदेश मंत्री एस. जयशंकर बैठक में श्रीलंका के ताजा हालात की जानकारी देंगे. बैठक में श्रीलंका की मदद को लेकर भी चर्चा होगी. संकट की स्थिति में घिरे श्रीलंका की मदद के लिए सबसे पहले भारत ने ही हाथ बढ़ाया और मदद का यह सिलसिला जारी है. श्रीलंका को भारत ईंधन और राशन की आपूर्ति में मदद कर रहा है. पिछले सप्ताह विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने कहा ति भारत ने श्रीलंका के लिए 3.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वादा किया. भारत ने श्रीलंका के किसानों की मदद के लिए दी गई क्रेडिट लाइन के तहत 44,000 मीट्रिक टन यूरिया भी सौंपा. हालांकि वहां की राजनीतिक अस्थिरता को लेकर भारत लगातार चिंतित और सचेत है.
उल्लेखनीय है कि संसद के मानसून सत्र शुरू होने से पहले रविवार को सर्वदलीय बैठक हुई जिसमें संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने श्रीलंका के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक की जानकारी दी. तमिलनाडु के राजनीतिक दलों द्रमुक और अन्ना द्रमुक ने सरकार से पड़ोसी देश श्रीलंका को आर्थिक संकट से निकालने के लिए हस्तक्षेप की मांग की थी जो आर्थिक आपातकाल का सामना कर रहा है.
गौरतलब है कि श्रीलंका में पिछले सौ दिनों से सरकार विरोधी आंदोलन चल रहा है. आर्थिक संकट से जूझ रहे देश में सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा उस समय फूट पड़ा जब देशभर में लोगों को ईंधन और खाद्यान्न सहित तमाम जरूरी चीजों के लिए किल्लत का सामना करना पड़ा. उग्र आंदोलनकारी पहले तो सड़कों पर उतरे और बाद में राष्ट्रपति गोटाबाया और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमासिंघे के तत्काल इस्तीफे की मांग को लेकर राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया. हालांकि प्रदर्शनकारियों के पहुंचने से पहले गोटाबाया राष्ट्रपति भवन से परिवार सहित भाग चुके थे. कई दिनों तक गोपनीय स्थान पर छिपे रहने के बाद उनके मालदीव और उसके बाद सिंगापुर पहुंचने की खबर मिली. इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के निजी आवास को भी आग के हवाले कर दिया. लोग विक्रमसिंघे को भी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार मानते हुए तत्काल इस्तीफा देने की मांग कर रहे थे.
हालांकि बाद में राष्ट्रपति गोटाबाया, प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे सहित पूरे मंत्रिमंडल के इस्तीफे के बाद स्थिति कुछ नियंत्रण में आई. बाद में विक्रमसिंघे को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाकर नये सिरे से राष्ट्रपति चुनाव की घोषणा की गई है.