Ashok Kumar
जमशेदपुर : टाटानगर रेलवे स्टेशन के रेलवे पार्किंग स्टैंड में फायरिंग की घटना कोई नयी बात नहीं है. दो दशक पहले तो टेंपो चालक जितेंद्र को अपनी जान देकर कीमत चुकानी पड़ी थी. बावजूद यह दौर आज भी जारी है. भले ही पार्किंग ठेकेदार बदल गये, लेकिन विवाद पहले जैसा अब भी हो रहा है. तब भी वर्चस्व को लेकर घटना घटी थी और इस बार भी वर्चस्व का ही मामला सामने आया है.
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टेंपो चालक फ्री में लगाना चाहते थे टेंपो
दो दशक पहले जब नया कार पार्किंग स्टैंड बनाया गया था, तब टेंपो चालकों ने पार्किंग शुल्क देने का विरोध किया था. टेंपो चालक अपनी टेंपो को पार्किंग के भीतर लगाने के बजाय सड़क किनारे लगाते थे या ड्रॉपिंग लेन में खड़ी करते थे. इसके बाद टेंपो चालकों के समर्थन में तब बन्ना गुप्ता उतर गये थे. तब बन्ना गुप्ता टेंपो चालक बेरोजगार संघ के नेता हुआ करते थे और सपा से राजनीति में हाथ आजमा रहे थे.
टेंपो चालकों ने पार्किंग कार्यालय में लगायी थी आग
टेंपो चालकों के आंदोलन को रंग देने के लिये तब एक दिन शहर में टेंपो नहीं चलाने की घोषणा की गयी थी. इसके बाद सभी टेंपो चालकों ने पूरे स्टेशन के बाहर टेंपो खड़ी कर जाम कर दिया था. कड़ी धूप में बन्ना गुप्ता सिर पर छत्री लगाकर टेंपो चालकों को समझा रहे थे कि कोई उपद्रव नहीं होना चाहिये, लेकिन उपद्रव तो हो गया. इस बीच पार्किंग ठेकेदार के कार्यालय को ही फूंक दिया गया था.
किसने मारी थी टेंपो चालक जितेंद्र को गोली
टेंपो चालक जितेंद्र को गोली किसने मारी थी. इसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया है. टेंपो चालकों का कहना था कि उपेंद्र सिंह के समर्थकों ने गोली मारी है, जबकि उपेंद्र सिंह का कहना था कि टेंपो चालक खुद ही आपस में उलझ गये थे. मामले में केस भी हुआ था.
उपेंद्र सिंह जेल गये लेकिन जीत भी हुई
जिस मुद्दे को लेकर टेंपो चालकों ने आंदोलन किया था उस मुद्दे में उपेंद्र सिंह की ही जीत हुई थी. तब वे जेल जरूर गये थे, लेकिन टेंपो चालकों को पार्किंग शुल्क भी देना पड़ा. उसके बाद पार्किंग में टेंपो चालकों ने शुल्क देने को लेकर कभी विवाद नहीं किया.
भंग हो गयी थी विधि-व्यवस्था
घटना के दिन स्टेशन क्षेत्र की विधि-व्यवस्था पूरी तरह से भंग हो गयी. पुलिस के हत्थे जो चढ़ गया उसकी खूब पिटायी की गयी थी. बन्ना गुप्ता की भी पुलिस ने पिटायी की थी. जिला से फोर्स पहुंचने के बाद जाकर विधि-व्यवस्था को सामान्य करने का काम किया गया था. आज भी घटना को टेंपो चालक और शहर के लोग नहीं भुले हैं.
कब किसके जिम्मे रहा पार्किंग स्टैंड
आज का कार पार्किंग स्टैंड ढाई दशक पहले तक नहीं था. तब साइकिल स्टैंड हुआ करता था. तब बाइक का चलन भी कम था. साइकिल स्टैंड में साइकिल की भरमान होती थी. तब स्वपन सिंहदेव और राबर्ट दास साइकिल स्टैंड के जिम्मे पार्किंग का ठेका था. इसके बाद नया कार स्टैंड बनते ही अजय शर्मा को ठेका मिला था. पांच साल के बाद यह ठेका बागबेड़ा के उपेंद्र सिंह को मिल गया था. उपेंद्र ने 10 साल तक स्टैंड चलाया था. इसके बाद कोटेशन में पार्किंग को चलाया गया था. एक बार मुंबई के एक ठेकेदार ने भी पार्किंग में हाथ आजमाया था. फिलहाल रेलवे पार्किंग का ठेका शैल इंजीनियरिंग के जिम्मे है.
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